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एक मुक्तक

रात  माना  है  ज़रूरी,  दोपहर  भी   है   ज़रूरी , छांह जिसमें प्यार की हो, एक  घर भी है ज़रूरी,  राह  मुश्किल  है बहुत ये, कट न पाएगी अकेले-  ज़िन्दगी के इस सफ़र में, हमसफ़र भी है ज़रूरी, -डॉ. विष्णु सक्सेना