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बड़ा नहीं होता....

कभी जो तेज हवा  से  लड़ा नहीं  होता, वो रोशनी  के साथ भी  खड़ा नहीं होता, बड़ा  वही  है  जिसे  सब  बड़ा  बताते है बड़ा जो खुद को बताए, बड़ा नही होता। #vishnusaxena #vishnulok #muhabbat_zindabad #रेत_पर_नाम_लिखने_से_क्या_फायदा

गीतांश

जब भी सोचा  कि  शाख  को   छू  लूं गिरके सूखे हुए फूलो ने बहुत रोका था, हाथ कांटो ने कर दिए घायल- मुझको, एक और संभलने का  दिया मौका था।

योग दिवस

मित्रो,   रखना  है   अगर   यह  शरीर   नीरोग। ब्रह्ममहूर्त में जाग कर  प्रतिदिन  करिये  योग।। -डॉ.विष्णु सक्सैना

संदीप सपन जी से भेंट

करीब 16 वर्ष बाद मैं इस बार 15 अप्रैल को जबलपुर कमानिया गेट के एक कवि सम्मेलन में गया। वहां के वरिष्ठ कवि श्री संदीप सपन जी ( पिता श्री सुदीप भोला ) से मिलने का संकल्प लेकर घर से निकला था क्यों कि विगत कई वर्षों से वह बहुत बीमार चल रहे थे, मस्तिष्क में रक्त प्रवाह रुकने के कारण उनकी जिव्हा पर भी  पक्षाघात हो गया था। समय, उचित उपचार तथा उनके परिवार की उचित देखभाल ने उनको फिर से पूर्ण स्वस्थ कर दिया। पहली बार अर्जुन शिशोदिया और मुन्ना बैटरी के साथ जब उनके नए घर पर मिलने गया तो देखकर एक दम खिल गए, मैं उनसे छोटा हूँ इसके बावजूद वो मुझे पहले भी बहुत स्नेह करते थे और आज भी। पहले भी चरणस्पर्श के लिए गए हुए मेरे हाथों को बीच में रोक लेते थे वैसे ही आज भी रोक लिया, पता नहीं ऐसा करके मुझे सम्मान दे रहे थे या गीत विधा को। बहुत देर गुफ्तगू हुई,खूब हंसी ठट्ठा हुआ, पुरानी स्मृतियों को ताजा किया। बात करने का जबलपुरिया लहजा आज भी जस का तस है। वह भाग्यशाली हैं कि उनका सुदीप भोला जैसा पुत्र है ईश्वर उन्हें इसी प्रकार पूर्ण स्वस्थ और दीर्घायु बनाये।  #जबलपुर #Jabalpur #sandeep_sapan #vishnu #vishnusaxena

🌷गद्य पर पद्य का प्रभाव🌿🌷

🌱🌷गद्य पर पद्य का प्रभाव🌿🌷 अभी हाल ही में पटना में बिहार हिंदी सम्मेलन का आयोजन में जाना हुआ। पूर्व राज्यसभा सांसद श्री आर.के.सिन्हा जी की इस आयोजन में महती भूमिका थी। यह आयोजन तीन दिवसीय था, 2 अप्रैल की शाम को कविसम्मेलन होना था। सुबह के सत्र के लिए जाने माने लेखक श्री वेद प्रताप वैदिक को भी बोलने के लिए आमंत्रित किया गया था। दोपहर को लंच पर मेरी उनसे भेंट हुई। वैदिक जी से मेरी एक भेंट कवि सम्मेलन समिति के अधिवेशन में हरिद्वार में हो चुकी थी लेकिन इस भेंट को वैदिक जी याद नहीं कर पा रहे थे। जब सिन्हा जी ने मेरे बारे में विस्तृत रूप से बताया तो वो थोड़ा सा गंभीर हुए। हम दोनों अन्नपूर्णा गेस्ट हाउस साथ ही एक ही गाड़ी में आये, दोनों के पास पास कमरे थे।  उनके मुताबिक उन्होंने कविसम्मेलन कभी सुना नहीं था (हालांकि ये बात मुझे पची नहीं, इतने पुराने व्यक्ति जिनके अनेक बड़े बड़े कवि मित्र रहे हों और उन्होंने कविसम्मेलन न सुने हों) इसलिए शाम को होने वाले कविसम्मेलन में उन्हें भी आमंत्रित किया गया। ये कवि सम्मेलन गीत प्रधान था इसलिए जैसे जैसे कवि सम्मेलन जवान होता गया, वैदिक जी पर कविताओं का नशा

प्रतिभा उम्र की मोहताज नहीं

बीना के श्री महेश कटारे गज़लों की दुनिया का जाना माना नाम है। आज तड़के कटनी से लौटते हुए बीना स्टेशन पर उतरा। यहां से ढाई घंटे बाद मेरी कनेक्टिंग ट्रेन थी। मैंने सोचा फोन मिला कर देखूँ, शायद जाग रहे हों।फोन पर बात हुई तो मालूम हुआ कि वो सागर में अपने छोटे बेटे के पास हैं 4 दिन से। मैंने कुशलक्षेम जानने के बाद फोन काट दिया। 5 मिनिट बाद फिर फोन आया और बोले मैं नहीं तो क्या हुआ घर तो है, मेरा बड़ा बेटा जो आपका ज़बरदस्त फेन है वो आपको लेने आरहा है आप घर जाकर फ्रेश होकर नाश्ता वगेरह करके तब जाएं, मुझे खुशी मिलेगी। मेरे काफी मना करने के बाद मैं उनका आग्रह न टाल सका और उनके बड़े बेटे के साथ घर चला गया। कवियो के बच्चे जिस तरह के होते हैं वैसा ही उनका बेटा अति विनम्र स्वभाव वाला निकला। घर पर गेट पर उनकी छोटी सी पोती ने निश्छल मुस्कान के साथ ऐसे स्वागत किया जैसे जाने कितने वर्षों से मुझे जानती है। मुस्कुराते हुए बोली-आइए दादा जी, आज आपने मेरे दिन बना दिया। आपको खूब सुनती हूँ यू ट्यूब पर। अब बताता हूँ दादा जी की इस नयी पोती के बारे में। विलक्षण प्रतिभा की इस बच्ची का नाम है 'काव्या कटारे' घर म

नयी सरकार और कलाकार

नयी सरकार और कलाकार---- समस्त कलाओं का धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्व होता है। कवि हो, शायर हो, पेंटर हो, खिलाड़ी हो, गायक हो या वादक हो, किसी भी श्रेणी का कलाकार हो उसके पास जो प्रतिभा होती है वह उसे नैसर्गिक रूप से मिलती है। जब प्रतिभा ईश्वर प्रदत्त है तो ईश्वर उसे किसी धर्म या जाति के बंधन में नहीं बांधता अपितु जिसको पात्र समझता है उसे वह उस कला से परिपूर्ण कर देता है। फिर वह कलाकार समाज में अपनी कला का प्रदर्शन कर समाज के लिए अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह करता है। अब यह समाज के ऊपर निर्भर है कि वह उस कलाकार की कला का किस रूप में ध्यान रखता है उसे सम्मानित करता है या उसे उसके भाग्य के भरोसे छोड़ देता है। इतिहास बताता है कि पुराने समय में राजा-महाराजा, बादशाह अपने दरबार में कलाकारों का संरक्षण करते थे। उनका मानना था कि कलाकार समाज का आईना होते हैं समाज में क्या घटित हो रहा है, वह दरबार मे सिंहासन पर बैठने वाले की अपेक्षा बेहतर तरीके से बता सकते हैं, अगर वह अपनी कला के माध्यम से सामने रखेंगे तो वह बहुत प्रभावी होगा। अतः जो कुशल राजा होते थे उन्हें दरबारी संरक्षण देकर उनको परिवारिक चिंताओ