प्रतिभा उम्र की मोहताज नहीं

बीना के श्री महेश कटारे गज़लों की दुनिया का जाना माना नाम है। आज तड़के कटनी से लौटते हुए बीना स्टेशन पर उतरा। यहां से ढाई घंटे बाद मेरी कनेक्टिंग ट्रेन थी। मैंने सोचा फोन मिला कर देखूँ, शायद जाग रहे हों।फोन पर बात हुई तो मालूम हुआ कि वो सागर में अपने छोटे बेटे के पास हैं 4 दिन से। मैंने कुशलक्षेम जानने के बाद फोन काट दिया। 5 मिनिट बाद फिर फोन आया और बोले मैं नहीं तो क्या हुआ घर तो है, मेरा बड़ा बेटा जो आपका ज़बरदस्त फेन है वो आपको लेने आरहा है आप घर जाकर फ्रेश होकर नाश्ता वगेरह करके तब जाएं, मुझे खुशी मिलेगी। मेरे काफी मना करने के बाद मैं उनका आग्रह न टाल सका और उनके बड़े बेटे के साथ घर चला गया। कवियो के बच्चे जिस तरह के होते हैं वैसा ही उनका बेटा अति विनम्र स्वभाव वाला निकला। घर पर गेट पर उनकी छोटी सी पोती ने निश्छल मुस्कान के साथ ऐसे स्वागत किया जैसे जाने कितने वर्षों से मुझे जानती है। मुस्कुराते हुए बोली-आइए दादा जी, आज आपने मेरे दिन बना दिया। आपको खूब सुनती हूँ यू ट्यूब पर।

अब बताता हूँ दादा जी की इस नयी पोती के बारे में।
विलक्षण प्रतिभा की इस बच्ची का नाम है 'काव्या कटारे' घर मे इसे 'परी' बोलते हैं, उम्र है 14 वर्ष, नवीं क्लास में पढ़ती है। आगे जो बताने जा रहा हूँ...मुझे देख कर आश्चर्य हुआ आपको सुनकर आश्चर्य होगा। इतनी सी उम्र में उसका एक बाल कविता संग्रह "धमाचौकड़ी"(लोकोदय प्रकाशन लखनऊ) तथा एक कहानी संग्रह "काली लड़की" (बुक्स क्लीनिक मुम्बई) से प्रकाशित हो चुका है। हँस, अविलोम, हरिगंधा जैसी प्रतिष्ठित  पत्रिकाओं में वह प्रकाशित हो चुकी है। सरिता और कथादेश पत्रिकाओं में उसकी कहानियां स्वीकृत हो चुकी हैं। उसके पिता ने बताया कि वो अपने स्कूल में भी टॉपर है। सप्ताह के पांच दिन अपनी पढ़ाई पर पूरी तरह फोकस और दो दिन अपने लेखन पर फोकस रखती है।  बहुत प्यारी बिटिया, उसके स्वभाव और बातचीत से झलकता है वो साहित्य के प्रति अभी से कितनी गंभीर है। मैंने पूछा तुम्हारे दादा जी लिखने में तुम्हारी मदद करते हैं तो बोली मदद तो नहीं लेकिन मेरी रचनाओं को सुनते बहुत ध्यान से हैं। ऐसे बच्ची से कौन प्यार न करना चाहेगा। ऐसा लगता है इसे लेखन अनुवांशिक रूप से मिला है। श्री महेश कटारे जी आप  धन्य हैं। आज अगर आपके घर न जाता तो इस प्रतिभा को देखने से वंचित रह जाता। उसके स्कूल का वक्त हो रहा था और मेरी ट्रेन का। जाते जाते मुझे अपनी दोनों किताबें भेंट करते हुए खिलखिलाते हुए बोली- दादा जी, आज आपसे मिलकर मैं पूरे दिन खुमारी में रहूँगी। अगली बार जल्दी आइए और खूब सारा वक्त निकाल कर आइए......मैं उसे आकंठ स्नेह से लबरेज होकर फुदकते हुए जाते हुए एकटक उसे तब तक  देखता रहा जब तक वो मेरी आँखों से ओझल नहीं हो गयी। घर से निकलते हुए मुझे भी ऐसा लग रहा था जैसे मैं यात्रा पर बिल्कुल तरोताज़ा होकर निकल रहा हूँ । 

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