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थ्री ईडियेट्स

आज बहुत दिनो बाद घर पर ही अपने डी.वी.डी प्लेयर पर थ्री ईडीयेट्स देखी। अपने उद्देश्य मे पूरी तरह से कामयाब ये फिल्म जब मै अपने पूरे परिवार के साथ देख रहा था तो उस समय मैं दो पीढ़ीयों के बीच सोछ में आये हुये बदलव में उलझा हुआ था। मेरी श्रीमती जी की नींद से बहुत अच्छी दोस्ती है इसलिये वो तो पाँच मिनिट बाद ही अपने दोस्त के साथ चली गयीं , लेकिन मुझे अकेला छोड़ गयीं मेरे समझदार होते हुये दोनों बेटों के बीच....। आज दोनों ही मुझे ये फिल्म दिखाने में इतनी क्यों उत्सुकता दिखा रहे थे ये बात मेरी समझ में तब आयी जब फिल्म खत्म हुयी। आदमी के अन्दर जो टेलेंट है या जो प्रभु को उससे कराना है वो कभी न कभी होकर रहता है ज़रूरत है तो उसे सही समय पर पहचानने की। मुझे शुरू से ही संगीत और साहित्य से लगाव था , लेकिन न तो मैंने और न ही मेरे माता पिता ने इसको पहचानने की कोशिश की , और बना दिया मुझे डाक्टर। आज कौन सी चीज़ मेरे काम आ रही है ये दुनिया जानती है।लेकिन अपने दोनो बेटों के साथ ये अन्याय मैं नहीं होने दूँगा। एक एस.एम.एस. मेरे पास आया था जिसमें भगवान बन्दे से कहते हैं कि बन्दे , तू वही करता है जो त...

डा. विष्णु सक्सैना के बारे में राय .......

डा . विष्णु सक्सैना एक ऐसे कवि का नाम है जो कुछ वर्षों पहले सावन के बादलों की तरह उमडा और पूरे देश पर कुछ इस तरह बरसा कि हर काव्य प्रेमी का मन सदा सदा के लिये उसकी रस धारा में डूब गया। शायद ही अन्य कोई ऐसा कवि हो कीर्ति के उच्च से उच्चतर शिखरों पर इतने कम समय में पहुँचा हो जितने कम समय में विष्णु पहुँचे हैं। इसका कारण सिर्फ उनका मधुर कंठ ही नहीं अपितु उनकी सहज युवकोचित प्रणयानुभूतियाँ हैं जो नये - नये बिम्बों , प्रतीकों और उनकी सहज सरल भाषा में व्यक्त होकर सीधे हृदय पर चोट करती है। उनकी भाषा का प्रवाह और उनका स्वर सँयोजन एक झरने के समान है जिसमें बडे - बडे तैराकों के पाँव उखड जाते हैं और वे उसमें डूबने के लिये विवश हो जाते हैं। कुछ समय से पिछली पीढी के लोकप्रिय गीतकारों में से कुछ के दिवंगत हो जाने और कुछ के मौन हो जाने के कारण ऐसा लगा था कि हास्य रस प्रधान कविताओं की बाढ में गीत जीवित नहीं रह सकेगा लेकिन विष्णु क...

राहों में जब रिश्ते बन जाते हैं

“ राहों में जो रिश्ते बन जाते हैं , वो रिश्ते तो मंज़िल तक जाते हैं। “- ठीक ही कहा है गज़लकार प्रमोद तिवारी ने। मेरी ज़िन्दगी में भी कुछ रिश्तों ने अपनी जगह बनाई जिन्हें तमाम सामाजिक और पारिवारिक विरोधों के बावज़ूद् मैंने अब तक बडी शिद्दत के साथ जिया। कुछ रिश्ते सिर्फ दस्तक देकर चले गये , शायद उनके पाँव कमज़ोर थे। कुछ रिश्ते सिर्फ स्वार्थ के लिये बने जिन्हें समझने के बाद मैने उनसे सदा के लिये उनसे नाता तोड लिया। कुछ रिश्ते हृदय की गहराइयों तक जुडे लेकिन उन्हें सामाजिक जामा नहीं मिल सका और तमाम उम्र अपने होने और न होने का अस्तित्व तलाशते हुये जीवन की सरिता की उत्ताल लहरों पर तैर कर अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराते रहे। ये ब्लाग आज मैं अपनी खुशी ज़ाहिर करने के लिये लिख रहा हूँ। क्यों कि एक पवित्र रिश्ता बहन का जो मैंने आज से 28 वर्ष पहले बनाया था आज उस रिश्ते के अन्दर आने वाली सारी ज़िम्मेदारियों को जितनी सामर्थ्य थी उस अनुसार पूरा कर...