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Showing posts from October, 2011

एक दीवाली यहाँ भी मना लीजिये........

झील के जल सी ठहरी है एक ज़िंदगी आप ही छू के लहरें उठा दीजिये , मेरे घर अन्धेरों का मेला लगा एक दीवाली यहाँ भी मना लीजिये। बांध लो तुम जो ज़ुल्फें सवेरा सा हो और बिखेरो यहाँ रात हो जायेगी , चाहे मुँह फेर कर यूँ ही बैठे रहो तुम से फिर भी मेरी बात हो जायेगी , मुद्दतों से न सूरज इधर आ सका- दूरियों की घटायें घटा दीजिये। जाने चन्दा से रूठी है क्यूँ चाँदनी नींद भी रूठ बैठी मेरी आँख से , रूठी-रूठी लहर आज तट से लगे पर न भँवरा ये रूठा कँवल पाँख से , मन तुम्हारा भी दरपन सा हो जायेगा- धूल इस पर लगी जो हटा दीजिये। जब भी आँखों में झाँका घटायें दिखीं अब तो बरसेंगी ये सोचने मन लगा , तन झुलसता रहा , पर न बारिश हुयी प्यासा-प्यासा सा हर बार सावन रहा , स्वांति की न सही बूँद आँसू की दे प्यास चातक की कुछ तो बुझा दीजिये।

आँसू गंगा जल हो बैठे.....................

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याद तुम्हारी करके जब भी मेरे नयन सजल हो बैठे। मन हो गया भगीरथ जैसा आँसू गंगा जल हो बैठे॥ प्यास दबाये बैठी कब से सूख रहा था जिसका कण कण , चाह बरसने की थी मन में पर न धरा ने दिया निमंत्रण इस पर्वत से उस पर्वत हम आवारा बदल हो बैठे॥ एक कली के पास गया तो बोली मुझसे मुझे न तोडें , जब वो खिल कर फूल बनी तो मन ये बोला रिश्ता जोडें , जब उसको चूमा काँटों से होंठ मेरे घायल हो बैठे॥ जीवन तो एक समझौता है पल में हँसना पल में रोना , एक तरफ फूलों से शादी एक तरफ काँटों से गौना , शायद कोई शिव मिल जाये सोच के यही गरल हो बैठे॥ रही अमावस सखा हमारी साथ ले गये तुम तो पूनम , एक आँख से खुशी झलकती एक आँख आँसू से है नम , जो भी चाहे वो हल कर ले हम वो प्रश्न सरल हो बैठे॥ बन के नींद मेरी पलकों को तुमने कितना मान दिया है , सपनों में बातें कर तुमने इस दिल पर अहसान किया है , झील सी नीली आँखों में हम लगने को काजल हो बैठे॥