एक दीवाली यहाँ भी मना लीजिये........
झील के जल सी ठहरी है एक ज़िंदगी आप ही छू के लहरें उठा दीजिये , मेरे घर अन्धेरों का मेला लगा एक दीवाली यहाँ भी मना लीजिये। बांध लो तुम जो ज़ुल्फें सवेरा सा हो और बिखेरो यहाँ रात हो जायेगी , चाहे मुँह फेर कर यूँ ही बैठे रहो तुम से फिर भी मेरी बात हो जायेगी , मुद्दतों से न सूरज इधर आ सका- दूरियों की घटायें घटा दीजिये। जाने चन्दा से रूठी है क्यूँ चाँदनी नींद भी रूठ बैठी मेरी आँख से , रूठी-रूठी लहर आज तट से लगे पर न भँवरा ये रूठा कँवल पाँख से , मन तुम्हारा भी दरपन सा हो जायेगा- धूल इस पर लगी जो हटा दीजिये। जब भी आँखों में झाँका घटायें दिखीं अब तो बरसेंगी ये सोचने मन लगा , तन झुलसता रहा , पर न बारिश हुयी प्यासा-प्यासा सा हर बार सावन रहा , स्वांति की न सही बूँद आँसू की दे प्यास चातक की कुछ तो बुझा दीजिये।