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ग़ज़ल

ग़मो को आईना दिखला रहा हूँ। मुसलसल चोट दिल पे खा रहा हूँ। ज़मीं और आसमाँ मिलते नहीं हैं मैं इससे कब भला घबरा रहा हूँ? गया जो वक्त वो वापस न होगा मैं उल्टे पाँव वापस आ रहा हूँ। वो जिनमे अब तलक उलझे हुए थे उन्ही ज़ुल्फ़ों को मैं सुलझा रहा हूँ। जो बाते खुद नही समझा अभी तक वही बातें उन्हें समझा रहा हूँ। मिलेंगे वो मुझे इक दिन यकीनन यही कह कर मैं दिल बहला रहा हूँ लगी हैं ठोकरें रस्ते में मुझको मगर रुकता नहीं चलता रहा हूँ। @डा.विष्णु सक्सेना सुप्रभात 16 मार्च 2016

ग़ज़ल

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सोचिये गर दो दिलों में राब्ता हो जायेगा। हिचकियों का खूबसूरत सिलसिला हो जायेगा। दिल मेरा बच्चा है अपने पास ही रखिये इसे लग गयी इसको हवा तो बेवफा हो जायेगा। जिस्म था बेजान इसमें जान तुमने फूंक दी धड़कनें चलने लगी हैं फायदा हो जायेगा। सुर सधा है आपका तो अपनी धुन में गाइये संग मेरे गाएंगे तो बेसुरा हो जायेगा। इस तरह से घूर कर मत देखिये हम को जनाब दिल में इन आँखों के ज़रिये रास्ता हो जाएगा। प्यार करना या न करना मुस्कुराकर देख ले मेरा दावा है सफे पर हाशिया हो जायेगा। ये शहर है पत्थरों का शख्स हर पत्थर का है देर तक देखोगे तो क्या आईना हो जायेगा?