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गीत- वो बदले तो मजबूरी है.....

तन और मन है पास बहुत फिर, सोच-सोच में क्यों दूरी है? हम बदले तो कहा बेवफा, वे बदले तो मजबूरी है। गंगा के तट बैठ रेत के,बना-बना के महल गिराये। उसने हमको, हमने उसको जाने कितने सपन दिखाए। झूठ-मूठ को मांग भरी थी, हाथ अभी तक सिन्दूरी है। हम ....... उपवन-उपवन घूमे फिर भी मन की कली नही खिल पायी। जग को सुरभित करदे अब तक ऐसी गंध नही मिल पायी। अब भी मन मृग बना हुआ है - फिरे ढूंढता कस्तूरी है। हम.... अब लगता है जाग-जाग कर सपनो के क्यों बोझ उठाये? मुस्कानों को बेच बेचकर आंसू अपने घर ले आये। प्रेम तो अब व्यापार बन गया- तड़पन उसकी मज़दूरी है। हम.... #kavivishnusaxena.com