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नववर्ष की आशा का गीत

गुनगुनाकर कह रहीं हमसे हवाएं आओ मेरे साथ सपनों को सजायें वर्ष भर जो शूल से चुभते रहे हैं आओ उनको फूल का उपहार दे दें, जिस कली ने ज़िन्दगी को खुशबुएँ दीं हम सुगंधि का उसे आभार दे दें, क्यों न उसके फूल गमलों में लगाएं आओ मेरे साथ सपनों को सजायें।... जिस नदी के जल को उसने छू लिया है वो मुझे गंगा सी पावन लग रही है, मेरे आँचल में सभी त्यौहार होंगे एक आशा की किरण भी जग रही है, हाथ में ले हाथ सारे ग़म भुलाएं। आओ मेरे साथ सपनों को सजायें.... नित शिखर छू लें नए आयाम के हम दूर होने की न सोचें पर धरा से, जिसने हमको कर दिया इतना बड़ा है आज भी उनके लिए हों हम ज़रा से, सोच के अपने फलक को हम बढ़ाएं आओ मेरे साथ सपनों को सजायें...

खूबसूरत ग़ज़ल

जब जब लगा हमें कि खुशी अब सँवर गयी हमसे छुड़ा के हाथ न जाने किधर गयी। तुम मिल गए हो तब से हमे लग रहा है यूँ बिखरी थी जितनी ज़िन्दगी उतनी निखर गयी। गुल की हरेक पंखुरी को नोच कर कहा तुम से बिछड़ के ज़िन्दगी इतनी बिखर गयी। मैं देख कर उदास तुझे सोचता हूँ ये तेरी हँसी को किसकी भला लग नज़र गयी। घबराइये न आप हो मुश्किल घड़ी अगर गुजरेगी ये भी जब घड़ी आसाँ गुज़र गयी। मुझको पता नही था ये उसका मिजाज़ है वो भोर बन सकी न तो बन दोपहर गयी। मैं साथ उसके चल नही सकता ये जानकर वो इक नदी थी झील के जैसी ठहर गयी

गीत

यादों को मैं रख लेता हूँ....... फूलों को तुम लेते जाओ, काँटों को मैं रख लेता हूँ। मेरी मुस्कानें तुम रख लो अश्कों को मैं रख लेता हूँ। कितना अच्छा लगता था तब जब मौसम था साथ हमारे, मेहंदी की खुशबू में बस कर रंग देते थे हाथ तुम्हारे वो अहसास तुम्ही ले जाओ यादों को मैं रख लेता हूँ...... आसमान के चंदा तारे सब हैं अब तो सखा हमारे, मेरे संग विरह में जलते जुगनू भटका करते सारे, नींदे तुमको सौंप चूका हूँ सपनों को मैं रख लेता हूँ..... अंदर तो एक सन्नाटा है बाहर है गुमसुम सा उपवन, थोथा थोथा सा लगता है अब तो हुआ निरर्थक जीवन, शब्दों की माला तुम पहनो अर्थो को मैं रख लेता हूँ.....

ग़ज़ल

ग़मो को आईना दिखला रहा हूँ। मुसलसल चोट दिल पे खा रहा हूँ। ज़मीं और आसमाँ मिलते नहीं हैं मैं इससे कब भला घबरा रहा हूँ? गया जो वक्त वो वापस न होगा मैं उल्टे पाँव वापस आ रहा हूँ। वो जिनमे अब तलक उलझे हुए थे उन्ही ज़ुल्फ़ों को मैं सुलझा रहा हूँ। जो बाते खुद नही समझा अभी तक वही बातें उन्हें समझा रहा हूँ। मिलेंगे वो मुझे इक दिन यकीनन यही कह कर मैं दिल बहला रहा हूँ लगी हैं ठोकरें रस्ते में मुझको मगर रुकता नहीं चलता रहा हूँ। @डा.विष्णु सक्सेना सुप्रभात 16 मार्च 2016

ग़ज़ल

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सोचिये गर दो दिलों में राब्ता हो जायेगा। हिचकियों का खूबसूरत सिलसिला हो जायेगा। दिल मेरा बच्चा है अपने पास ही रखिये इसे लग गयी इसको हवा तो बेवफा हो जायेगा। जिस्म था बेजान इसमें जान तुमने फूंक दी धड़कनें चलने लगी हैं फायदा हो जायेगा। सुर सधा है आपका तो अपनी धुन में गाइये संग मेरे गाएंगे तो बेसुरा हो जायेगा। इस तरह से घूर कर मत देखिये हम को जनाब दिल में इन आँखों के ज़रिये रास्ता हो जाएगा। प्यार करना या न करना मुस्कुराकर देख ले मेरा दावा है सफे पर हाशिया हो जायेगा। ये शहर है पत्थरों का शख्स हर पत्थर का है देर तक देखोगे तो क्या आईना हो जायेगा?