राहों में जब रिश्ते बन जाते हैं
“राहों में जो रिश्ते बन जाते हैं, वो रिश्ते तो मंज़िल तक जाते हैं।“- ठीक ही कहा है गज़लकार प्रमोद तिवारी ने। मेरी ज़िन्दगी में भी कुछ रिश्तों ने अपनी जगह बनाई जिन्हें तमाम सामाजिक और पारिवारिक विरोधों के बावज़ूद् मैंने अब तक बडी शिद्दत के साथ जिया। कुछ रिश्ते सिर्फ दस्तक देकर चले गये, शायद उनके पाँव कमज़ोर थे। कुछ रिश्ते सिर्फ स्वार्थ के लिये बने जिन्हें समझने के बाद मैने उनसे सदा के लिये उनसे नाता तोड लिया। कुछ रिश्ते हृदय की गहराइयों तक जुडे लेकिन उन्हें सामाजिक जामा नहीं मिल सका और तमाम उम्र अपने होने और न होने का अस्तित्व तलाशते हुये जीवन की सरिता की उत्ताल लहरों पर तैर कर अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराते रहे। ये ब्लाग आज मैं अपनी खुशी ज़ाहिर करने के लिये लिख रहा हूँ। क्यों कि एक पवित्र रिश्ता बहन का जो मैंने आज से 28 वर्ष पहले बनाया था आज उस रिश्ते के अन्दर आने वाली सारी ज़िम्मेदारियों को जितनी सामर्थ्य थी उस अनुसार पूरा कर् के मुक्त अनुभव कर रहा हूँ। इस पूरे 27 वर्ष के समय में मेरी माँ, पत्नी और बच्चों का पूरा सहयोग रहा जिनका मैं हृदय से आभारी हूँ।
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