सर्वेश एक--रूप अनेक.....(अमेरिका के संस्मरण--2011)
- अभी तक मेरी व्यक्तिगत परख सीमित थी सर्वेश के बारे में, मैं यही जानता था कि वो एक व्यंग्यकार हैं लेकिन इस बार जब यू. एस. और कनाडा की यात्रा में 35 दिनों का साथ रहा तब मालूम पडा कि इन महाशय में तो कई सर्वेश अस्थाना चुपचाप छिपे बैठे हैं, उन्हें देख कर मेरा भी नज़रिया बदला और प्रवीन की सोच भी.....। निदा साहब ने
कहा भी है कि-
हर आदमी में रहते है दस बीस आदमी,
जिसको भी देखना हो कईबार देखिये ।
- ये व्यक्ति बाहर से जितना परिपक्व दिखायी देता है उतना ही अन्दर से मासूम है, इसके अन्दर एक नटखट बच्चा है जो हर वक्त शरारत करने के अवसर ढूँढता रहता। कई अवसरों पर ऐसा देखा गया कि माहोल बहुत गम्भीर है लेकिन इनके आ जाने से वो प्रफुल्लित हो गया।
- सोने के मामले में हम दोनों की नींद के बराबर सोने वाले इन महाशय का जबाब नहीं। चाहे वो हवाई जहाज हो, कार हो, ट्रेन हो, बस हो या फिर 10 मिनिट की यात्रा वाली फेरी, भाई साहब मोका मिलते ही नींद को निराश नहीं करते थे। इसका कारण इनसे पूछा तो कहते भाई साहब मैं क्या करूँ ? नींद इतनी बेशर्म है कि बिना बुलाये चली आती है, अतिथि का सम्मान हमारा धर्म है।
-भोजन करने के मामले में भी इतना संयम .... बाप रे....। प्रवीन तो अपने संचालन में कहते भी थे कि सर्वेश लखनऊ की नज़ाक़त पूरी तरह समेटे हुये हैं। एक कौर कम खालें तो थोड़ी देर बाद भूख लगने लगती है एक कौर अधिक खालें तो अफारा होने लगता है। न तो अधिक खाने में रुचि न अधिक पीने में। वरना कायस्थ लोग तो खाने पीने के बड़े शौकीन होते हैं।
- नारी सभी की कमज़ोरी होती है, कोई ज़ाहिर कर देता है कोई नहीं। सर्वेश कुछ भी न छुपाने वालों मे से थे, अगर किसी महिला के साथ फोटो खिचवाना है तो निसंकोच खिचवा लेते थे। हम लोगों को बुरा न लग जाये तो उसी के साथ हम लोगों का भी खींच देते थे।
- लापरवाही कहूँ या फक़ीरी समझ में नहीं आता। किसी कमरे में जूते, किसी कमरे में पेंट और किसी कमरे में खुद्। मुझे सब संभाल कर रखने पड़ते थे। कभी मैं आलस्य और लापरवाही पर नाराज़ भी हो जाता तो मनाने की कई कलायें उन्हें आतीं और मैं आसानी से मान जाता।
-अंग्रेजी ज्ञान और भोगोलिक ज्ञान हम दोनों से काफी ज़्यादा था सर्वेश में। किसी अंग्रेज़ से जब बात करनी होती थी तो हम लोग सर्वेश को ही आगे कर देते वो हिन्दी में अनुवाद कर देते और हम समझ जाते।
- समय का ध्यान न रखना उनकी आदत में नहीं था। इसलिये मंच पर कविता पढते समय वो इतना डूब जाते कि हम लोगों को समय कम मिल पाता था,और ऐसा एक नहीं कई जगह हुआ, हम उनसे कहते कि भाई अपने हाथ में बंधी हुई घड़ी की तरफ तो देख लिया करो, तो कहते मेरी तो घड़ी बन्द है। पहले वक्त ने मेरा ध्यान नहीं रखा, अब मैं वक्त से बदला ले रहा हूँ। हम मुस्करा कर रह जाते....ये सोचकर कि इसे सुधारना बेकार है।
सर्वेश केवल हंसोड़ ही नहीं हैं, उनकी प्रतिभा गोष्ठियों में देखने को मिली, वे गम्भीर गज़ल और गीत भी सुनाते थे। जब लिखने बैठते तो बहुत सुन्दर और रोचक ड्राफ्टिंग भी करते थे। लोगों से गम्भीर मुद्दों पर लम्बी बहस करना भी जानते हैं वो....
कुशल नर्तक भी हैं सर्वेश लेकिन केवल भगवान दादा की इस्टायिल में।
जब सुधा ढींगरा के फिल्म थियेटर में हम लोग फिल्म पड़ोसन देख रहे थे तो जैसे ही कोई गाना आता था तो हम तीनों अपने को रोक नहीं पाते थे और एक साथ नाचने लगते थे। लेकिन सबसे मोहक डांस सर्वेश का ही होता था।
इस तरह बहुत सारे खट्टे मीठे अनुभवों के सहारे कब 35 दिन कट गये पता ही नहीं चला।
Comments
पहले तो आपको नमन ...फ़िर आदरणीय सर्वेश जी को अनन्य साधुवाद
emule, utorrent