प्रेरक गीत-1

लक्ष्य बिल्कुल सामने है और प्रत्यंचा तनी  है
उड़ रही है एक चिड़िया आँख उसकी भेदनी है।।

आँख का हर एक आँसू
हर्ष का संकेत देता,
बूंद बारिश की गिरे तो
झट मरुस्थल सोख लेता,
हर अंधेरे की तरफ से आ रही इक रोशनी है
उड़ रही......

युद्ध मे अभिमन्यु बनकर
मत लड़ाई ठानिये,
व्यूह में घुसकर के कैसे
है निकलना जानिए,
जीतना है रण अगर तो ये कला भी सीखनी है
उड़ रही......

तुम अगर चाहो तो मिट्टी को
खरा सोना बना दो,
रेत में भी तुम हुनर से
दूध की नदियां बहा दो,
इक नया इतिहास रच दो पास में जब लेखनी है
उड़ रही......

आज क्यो रावण के आगे
राम फिर खामोश हैं,
क्यो समर में एक शक्ति
से लखन बेहोश हैं,
क्यों नहीं लाते पवन सुत प्राण हित संजीवनी है
उड़ रही......

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