अद्भुत तनजानिया ( संस्मरण ) भाग-१
स्थान- दार एस सलाम ( तंजानिया)
अवधि- 11 जनवरी से 16 जनवरी तक
मुख्य यात्री- डा. विष्णु सक्सैना, डा. प्रवीण शुक्ल
सह यात्री- श्रीमती वंदना सक्सैना, श्रीमती संजना शुक्ला
आभार- श्री अशोक चक्रधर
अवसर- विश्व हिंदी दिवस
सौजन्य- स्वर्ण गंगा संस्था एवं भारतीय सांस्कृतिक केंद्र, दार एस सलाम, तनजानिया
स्थान- दार एस सलाम ( तंजानिया)
अवधि- 11 जनवरी से 16 जनवरी तक
मुख्य यात्री- डा. विष्णु सक्सैना, डा. प्रवीण शुक्ल
सह यात्री- श्रीमती वंदना सक्सैना, श्रीमती संजना शुक्ला
आभार- श्री अशोक चक्रधर
अवसर- विश्व हिंदी दिवस
सौजन्य- स्वर्ण गंगा संस्था एवं भारतीय सांस्कृतिक केंद्र, दार एस सलाम, तनजानिया
यूँ तो अब तक अनेक देशों की यात्राएं हो चुकी हैं लेकिन इस बार की यात्रा हमारे लिए विशेष इसलिए थी कि हम विदेश में भी अपना घर ले गए थे। यात्रा कमदिनों की थी इसलिए मैंने प्रवीण के सामने प्रस्ताव रखा कि क्यों न हम लोग इस बार अपनी अपनी सह धर्माणियो को साथ ले चलें। तुमने भी अभी अपने पिताको खोया है और मैंने भी अपनी माँ के विछोह में हूँ तो ये यात्रा इस अवसाद से निकलने में हमारी सहायता कर सकती है। वो मेरे प्रस्ताव से सहमत हो गए। वंदना के पास तो पासपोर्ट था लेकिन संजना का पासपोर्ट आनन फानन में बनवाया गया, और हम लोगो ने देवेंद्रजी को बोल दिया कि इस बार हम दो लोग नहीं 4 लोग आएंगे। उन्होंने प्रसन्नता से सहमति दे दी। यलो फीवर आदि के टीके लगाने की औपचारिकताएं समय से पूरी कर ली गईं थी।
11 जनवरी 2018
माँ की त्रयोदशी 8 को समाप्त हुई। माँ पूरे घर और मेरी जिंदगी के एक कोने को रीता कर गयी थी। रिश्तेदार जा चुके थे। बिखरे हुए घर को फिर से सलीके से ठीक करने में 2 दिन लग गए। 11 को हमे ग़ज़िआबाद के लिए निकलना था। क्यो कि रात 3 बजे की फ्लाइट थी। फ्लेट पर पहुच कर थोड़ी देर आराम किया इतनी देर में ही श्री कृष्ण मित्र जी के सुपुत्र हिमांशु लव का फोन आया कि शाम का भोजन हमारे घर है। हम लोग 8 बजे उनके घर जेसे ही पहुचे पूरा घर खुशबू से महक रहा था। घर के सभी सदस्य आदरणीय मित्र जी , आंटी जी, आँचल भाभी, एकता, मनु और विभूति सभी ने हमारा गर्म जोशी से स्वागत किया और हमे विदेश जाने की बधाई दी। थोड़ी देर में भाभी जी केक लेकर आगयीं, बोलीं कल आपका जन्म दिन है आप रात को ही फुर्र उड़ जाओगे इसलिए हम लोग आज ही आपका जन्मदिन सेलिब्रेट करेंगे।
सबके मन मे असीम आत्मीयता का भाव था। मैंने और वंदना ने केक काटा। सबको खिलाया। सभी की शुभकामनाओ से मैं अभिभूत हो गया।
खाना खाया, बड़ो से आशीर्वाद लिया, एकता कतर एयरवेज में एयरहोस्टेज रह चुकी हैं वो दर ए सलाम जाती रहतीं थीं इसलिए उनसे ज़रूरी जानकारियां ली और अपने फ्लैट पर आगये। समान पैक किया और 12 बजे हम एयरपोर्ट के लिए रवाना हो गए।
12 जनवरी 2018
वाहः क्या टाइमिंग थी। प्रवीण और हमारी। हम दोनों अलग अलग जगह से चले लेकिन एयरपोर्ट पर दोनों की टैक्सियां एक साथ रुकीं।
प्रवीण और हम तो अक्सर मिलते रहते हैं पर वंदना और संजना का व्यग्रता के साथ आलिंगन होना देखने लायक था। संजना के चेहरे पर अभूतपूर्व इकसाइटमेन्ट था। क्यो की उसकी पहली विदेश यात्रा थी, वंदना तो एक बार दुबई हो आयी है।
बहरहाल हम लोग शुरुआती सारी औपचारिकताएं एक घंटे पहले पार कर के बोर्डिंग गेट पर आगये।क्योकि ऑनलाइन बोर्डिंग करा लिया था इसलिए सब काम जल्दी निपट गया।
लगभग ढाई बज चुके थे, हम लोग वहीँ बैठकर ऊँघने लगे। एक घण्टे बाद बोर्डिंग शुरू हुई और हम लोग अपनी अपनी सीट्स पर बैठ गए। एयर अमीरात की फ्लाइट थी सारी व्यवस्थाएं शानदार। खाया पिया, फ़िल्म देखी और सो गए। हमारा अगला पड़ाव दुबई था। 4 घंटे बाद दुबई आगये। दुबई का एयरपोर्ट दुनिया मे सबसे सुंदर एयरपोर्ट है काफी बड़ा भी। यहां हम चलते चलते थक जाएंगे लेकिन इसका विस्तार कम नहीं होता।
यहां से पूरी दुनिया के लिए जहाज उड़ते हैं इसलिए सभी उच्चकोटि की सुविधाओं से सुसज्जित है ये एयरपोर्ट।यहां हमारा ठहराव ढाई घंटे का था। यहां भी चेकिंग बहुत ज़बरदस्त थी। शरीर के वस्त्रों को छोड़कर शेष सभी चीजों को एक्सरे से गुजरना पड़ता है। हमारी दोनों सहयात्रियों को ये बहुत असुविधाजनक लगा क्यों कि सभी गहने उतरवा लिए थे सुरक्षा अधिकारियों ने। सबने एक एक चाय पी और चल दिये अपने मुख्य पड़ाव की ओर। उसी एयरवेज का दूसरा जहाज। वही सीट । लेकिन परिचारिकायें बदल गईं। बहुत थक रहे थे हम लोग। पूरी रात ठीक से सो नही पाये थे। इसलिए नाश्ता लिया और एक फ़िल्म देखी और सोने का अभिनय किया। जैसे तैसे 5 घंटे निकाले। जैसे ही परिचारिकायें मेकअप करके तरोताज़ा दिखीं तो आभास हो गया कि हम तंजानिया पहुच गए हैं।
जहाज से उतरते ही वहां की शुद्ध हवा ने हमारा स्वागत किया। लेकिन गर्मी बहुत थी तापमान 32 डिग्री था। दर ए सलाम का अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा बहुत ही साधारण लगा। ऐसा हवाई अड्डा तो हमारे पटना एयरपोर्ट का होगा। भूमध्य रेखा के करीब होने के कारण यहां गर्मी अधिक पड़ती है इसलिए हर तरफ स्त्री पुरुष काले रंग के की दिखे। यहां भी सुरक्षा अव्वल दर्जे की थी। बाहर निकलने की प्रक्रिया में हमे एक घंटे से अधिक समय लग सकता था अगर भारतीय उच्चायोग की तरफ से प्रतिनिधि न मिला होता। लगेज बेल्ट से अपना सामान लेकर के जैसे ही हम बाहर निकले तो स्वर्ण गंगा संस्था के तमाम सदस्य हमारा स्वागत करने के लिए फूलों के गुलदस्ते लेकर बाहर खड़े थे। देवेंद्र जी सबसे गर्मजोशी से मिले लेकिन अपने ब्रजवासी अंदाज में एक नोजवान जैसे ही आलिंगन बद्ध हुआ मैं समझ गया ये और कोई नहीं जलेसर वाला जितेंद्र भारद्वाज ही है। क्यो कि देवेंद्र जी के अलावा एक यही शख्स था जो पिछले एक महीने से हमारे संपर्क में था। सभी के स्वागत को स्वीकारते हुए हमने तंजानिया देश की ज़मीन पर अपने कदम रखे तो लगा ये तो बिल्कुल भारत जैसा ही है।
नींद पूरी न होने के कारण हम चारों के चेहरे का नूर गायब था लेकिन सबके आत्मीय व्यवहार ने हमे एक नई ताज़गी सी दे दी
जितेंद्र बोले गुरु आप हमारी गाड़ी में आओ..
मैं और वंदना यंत्रवत उसके साथ और प्रवीण तथा संजना देवेंद्र जी के साथ हो लिए। 45 मिनिट बाद हम लोग दर ए सलाम शहर में आगये। रास्ते भर जितेंद्र इस देश की सामान्य जानकारियां देते आये थोड़ी देर में हम लोग होटल में आगये।
इस देश के समयानुसार शाम के 4 बज चुके थे।शानदार होटल था। कमरे भी बहुत बड़े बड़े और साफ सुथरे थे। बैड देखते ही सबसे पहले कमर सीधी की। तभी देवेंद्र जी का फोन आया कि आज शाम को साढे सात बजे हमारी संस्था के लोगों ने आपके स्वागत में परिचय सम्मेलन और रात्रि भोज का इंतज़ाम किया है। इसलिए आप लोग 7 बजे तैयार होजाये मैं लेने आऊँगा। थकन के कारण मन तो कर रहा था देवेंद्र जी के इस प्रस्ताव को ठुकरा दें लेकिन कुछ सोच कर मना नहीं कर पाए। हम लोगो ने एक घंटे विश्राम किया। पलक झपकते ही नींद आ गयी। चाय लेकर नहा कर फ्रेश हुए। ठीक 7 बजे देवेंद्र जी का फोन आ गया। विदेश में रह कर व्यक्ति पंक्चुअल बहुत हो जाता है। होना भी चाहिए जिसने समय का ध्यान नहीं रखा फिर समय उनका ध्यान नहीं रखता। हम चारो लोग उनके साथ गंतव्य के लिए रवाना हो गए। रास्ते भर शहर की मुख्य जगहों के बारे में बताते जा रहे थे देवेंद्र जी। स्कूल लेन, टेम्पल लेन इत्यादि इत्यादि।
20 मिनिट में हम लोग उस स्थान पर पहुच गए जहां हमारे सम्मान में भोज दिया जाना था। मुख्य द्वार पर शिवि ने हमारा वेलकम किया। शिवि देवेंद्र जी के सुपुत्र हैं। अपनी बड़ी नोकरी छोड़कर अब अपने पिता के कारोबार को पूरी तरह संभाल लिया है, मज़े की बात ये कि जनाब कविता भी लिखते हैं। एक बड़ा सा हॉल। जिसमे लगभग 60 लोग । महिलाएं एक तरफ बैठीं थीं पुरुष एक तरफ। बच्चे दूर अपनी मस्ती में मस्त थे। एक स्टेज नुमा जगह जहां 6 कुर्सियां पड़ी थी। हमारे हाल में प्रवेश करते ही सब लोगों ने खड़े होकर, तालियां बजाकर हमारा स्वागत किया। हम चारो को उन कुर्सियों पर बैठा दिया गया। जितेंद्र आज के गेट टू गेदर का संचालन कर रहे थे। इस साधारण से युवा में संचालन की भरपूर क्षमताएं दिखाई दे रहीं थीं।
सरस्वती वंदना हुई। फिर सभी का हम लोगों से परिचय इस तरह कराया गया कि पुरुषके खड़े होते ही दूसरी तरफ से महिला खड़ी हो जाती थी जिससे आसानी से समझ मे आजाता था कि ये युगल पतिपत्नी हैं। परिचय में खूब हास परिहास हुआ। संस्था में अधिकतर लोग बिहार और झारखंड के थे कुछ परिवार उत्तर प्रदेश के थे। एक तरुण वशिष्ठ तो मेरे सिकंदराराऊ से 5 किलोमीटर दूर बिलार के निकल आये। मेरे यहाँ आने की सुनकर वह गत एक माह से रोमांचित हो रहे थे। उनसे मिलकर घर जैसा फील हुआ।कुछ बच्चों ने कविताएं सुनाई। कुछ लोगों ने हमारे स्वागत में गीत सुनाये। फिर जितेंद्र ने बताया केंद्रीय हिंदी निदेशालय और भारतीय उच्चायोग के अधिकारी भी आ गए है। उन्हें भी हमसे परिचय कराकर हमारे पास ही बिठाया गया। देवेंद्र जी ने अपने उद्बोधन में संस्था की गतिविधियों पर प्रकाश डाला। अधिकारियों ने भी स्वागत वक्तव्य दिए। अंत मे प्रवीण और मुझे बोलने के लिए आमंत्रित किया। लोगो के आग्रह पर एक एक कविता भी सुनानी पड़ी।
कार्य क्रम समाप्त होने को ही था कि एक कोने से 10-15 छोटे छोटे बच्चे एक लाइन से रंग बिरंगी टोपियां पहने, मुंह से किसी वाद्य यंत्र को बजाते हुए चले आरहे थे। उनके पीछे जितेंद्र माइक पर गाते हुए आगे बढ़ रहे थे - "तुम जिओ हज़ारो साल साल के दिन हों पचास हज़ार...." उसके पीछे-पीछे शिवि एक मेज पर केक सजा कर ला रहे थे। सारे बच्चो ने एक साथ मेरे सामने घेरा बना लिया और बाजा बजा कर मुझे मेरे जन्म दिन का सरप्राइज दिया। सभी लोगो ने एक साथ हैप्पी बर्थ डे बोलकर, तालियां बजाकर मुझे शुभकामनाएं दीं।
मैंने सभी को हृदय से आभार व्यक्त किया और स्वर्ण गंगा संस्था का यह अनुपम उपहार देने के लिए देवेंद्र जी को धन्यवाद ज्ञापित किया। प्रसन्नता पूर्वक हम चारों ने मिलकर केक काटा। उम्र में सबसे बड़े होने के नाते उन्हें सबसे पहले केक खिलाकर आशीर्वाद लिया। फिर हम सभी ने एक दूसरे को केक खिलाया। खाना खाकर हम लोग होटल आगये। इस शाम ने हमारी सारी थकान उड़न छू कर दी। 11 बज चुके थे। बच्चों से फोन पर बात करके परस्पर कुशलक्षेम पूछ कर गुड नाईट कर ली।
Comments
आदरणीय वैसे तो मैं आपके गीतों का मुरीद हूं किन्तु आज आपका यह यात्रा वृत्तांत पढ़ कर ऐसा लगा कि मैं भी आप के साथ साथ ही यात्रा कर रहा हूं।
निसंदेह बेहतरीन...