रक्षा बंधन

दो बूंदे क्या बरसीं नभ से-डाल दिया यादों ने डेरा।
रात, हाथ मे राखी ले ली-जाने कब हो गया सवेरा।।

मैं छोटा तुमसे फिर भी तुम मुझसे बहस किया करतीं थीं,
मुझे सता कर, मुझे चिढ़ा कर मेरी उम्र जिया करतीं थीं,
लेकिन जब मैं थक जाता था, ले लतीं थीं बस्ता मेरा।  रात,.......

माँ ने जब भी मुझको पीटा तुमने अपनी पीठ लगा ली,
मुझको रोने दिया  कभी ना आंखें अपनी कर लीं खाली,
मुझे रोशनी दे डाली सब रख कर अपने पास अंधेरा। रात......

यादों के  वो धान उगे जो  कुंवर  कलेवे  पर  बोए थे,
जब तुम घर से विदा हुईं तो माँ से ज़्यादा हम रोये थे,
गले लगा कर तुम भी बिलखीं जब करने आयीं पग फेरा। रात......

जग से जब से विदा हुईं तुम फीका-फीका लगता सावन,
यूँ तो बहनें बहुत हैं फिर भी तुम बिन रीता मन का आंगन,
मन करता है सभी लुटा दूँ जितना मेरे पास उजेरा। रात.......#kavivishnusaxena

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