थ्री ईडियेट्स
आज बहुत दिनो बाद घर पर ही अपने डी.वी.डी प्लेयर पर थ्री ईडीयेट्स देखी। अपने उद्देश्य मे पूरी तरह से कामयाब ये फिल्म जब मै अपने पूरे परिवार के साथ देख रहा था तो उस समय मैं दो पीढ़ीयों के बीच सोछ में आये हुये बदलव में उलझा हुआ था। मेरी श्रीमती जी की नींद से बहुत अच्छी दोस्ती है इसलिये वो तो पाँच मिनिट बाद ही अपने दोस्त के साथ चली गयीं, लेकिन मुझे अकेला छोड़ गयीं मेरे समझदार होते हुये दोनों बेटों के बीच....। आज दोनों ही मुझे ये फिल्म दिखाने में इतनी क्यों उत्सुकता दिखा रहे थे ये बात मेरी समझ में तब आयी जब फिल्म खत्म हुयी। आदमी के अन्दर जो टेलेंट है या जो प्रभु को उससे कराना है वो कभी न कभी होकर रहता है ज़रूरत है तो उसे सही समय पर पहचानने की। मुझे शुरू से ही संगीत और साहित्य से लगाव था, लेकिन न तो मैंने और न ही मेरे माता पिता ने इसको पहचानने की कोशिश की,और बना दिया मुझे डाक्टर। आज कौन सी चीज़ मेरे काम आ रही है ये दुनिया जानती है।लेकिन अपने दोनो बेटों के साथ ये अन्याय मैं नहीं होने दूँगा।
एक एस.एम.एस. मेरे पास आया था जिसमें भगवान बन्दे से कहते हैं कि बन्दे, तू वही करता है जो तेरे मन में होता है लेकिन होता वही है जो मैं चाहता हूँ। तू वो कर जो मैं चाहता हूँ, फिर वो होगा जो तू चाहता है।
Comments
प्रणाम
कब आयी आप अमेरिका से ? कैसा रहा टूर ?
आपको मेरा ब्लॉग मिल ही गया | कैसा लगा ?
आपकी दुआएं प्रतिदिन चाहिए
डा. साहब को प्रणाम कहिये
---विष्णु
sir i m big fan of yours
you write great poem
sir my requested to you plzzzzzzz
write a english poem