स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर-- कलाई गुनगुनाती है.......

दिल के बगीचे से महक रिश्तों की आती है।

सावन लगते ही कलाई गुनगुनाती है॥


माँ का आँचल मुझे देश हित भक्ति सिखाता हरदम,

बापू का आशीष युद्ध में शक्ति दिलाता हरदम,

सीमाओं की रक्षा करते प्राण निछावर कर दूँ ,

बहना की राखी का धागा यही बताता हरदम,

शायद याद कर रही होगी, हिचकी आती है॥ दिल...........


रो मत बहना जंग खत्म होते ही आ जाऊँगा,

तुझे बिठा कर झूले में मैं मल्हारें गाऊँगा,

आसमान के तारे सारे करूँ निछावर तुझ पर

चन्दा की डोली में साजन के घर भिजवाऊँगा,

जा, हँस कर के घर के अन्दर, माँ बुलाती है॥ दिल............


मेरी कागज़ की कश्ती को पानी पर तैराना,

मेरे बस्ते को भी अपने कंधे पर लटकाना,

छीन-छीन कर मेरी टाफी बिस्किट भी खा जाना,

मेरी गलती होने पर भी माँ से खुद पिट जाना,

यादों की तितली हाथों को छू, उड जाती है॥ दिल..............


सरहद पर दुश्मन के खूँ से होली मन जाती है,

बम की आवाज़ें अपने संग दीवाली लाती है,

अपने सब त्योहार यहाँ पर यूँ ही मन जाते हैं

पर रक्षाबन्धन पर तेरी याद बहुत आती है,

आँखों के सागर की गागर छलछलाती है॥ दिल..............

Comments

abhi bhardwaj said…
sir ji superb creativity hai.........ultimately bas yahi kahunga ki bindas..........

pard kar ye lynes mera rom rom khil utha........
dur baithe baithe hi apni bahna se mil utha........


thanx!

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