गणित गीत...

एक अडिग सी शिला तुम सदा से रहीं,
बुलबुलों की तरह फूटते हम रहे।
दो से दो की तरह तुम तो दूने हुए,
और गुणन खण्ड से टूटते हम रहे।

हमने माथे की बिन्दी को बिन्दु समझ,
जब चुराया तो सीमांत रेखा बना।
जब तना लाजवंती का हमने छुआ,
वो भी झुकने के स्थान पर तन गया।
ज्यों दशमलव के आगे लगे शून्य हों
बस उन्हीं की तरह छूटते हम रहे। एक अडिग.........

चुपके-चुपके हमें जब निहारा किये,
दृष्टि ऐसी झुकी जैसे समकोण हो।
रूप ही एक बस शाश्वत सत्य है,
सृष्टि ऐसी लगी ज्यों स्वयं गौण हो।
तुम स्वयं-सिद्ध सी एक प्रश्नावली
हर कठिन प्रश्न से रूठते हम रहे। एक अडिग.....

हम कई बार मन से लघुत्तम बने,
तुम महत्तम बने और बनते गये।
यूँ तो अस्तित्व मेरा रहा शून्य-सा,
अंक पर जब लगा लोग गिनते गये।
अर्थ के वास्ते आज कवि बन गये

हर कठिन प्रश्न से रूठते हम रहे। एक अडिग..

Comments

Din Bhar Padhte Rehte Hum
Phir Bhi Number Aate Kam
Teacher Apki Kasam

Pehla Mushkil Hai Hindi
Jiske Mathe Pr Bindi

Dusra Mushkil Hai Hisab
Jiska Aata Nahi Jawab

Tisra Mushkil Hai Bhugol
Jiki Sari Baatein Gol..........


Unknown said…
दिल में दर्द, चेहरे पे मुस्कान लिए फिरता हूँ। हवा का झोंका हूँ,खुश्बु साथ लिए फिरता हूँ।avi
Unknown said…
sir aapka to jawab hi nhi
Anonymous said…
Kya bat hai wah
Suresh said…
Wah Wah Kya Baat hai, Sir
Unknown said…
Wah yu to astitwa mera rha sunya sa
Unknown said…
Wah yu to astitwa mera rha sunya sa

Popular posts from this blog

रेत पर नाम लिखने से क्या फायदा.......

एक दीवाली यहाँ भी मना लीजिये........

गीत- वो बदले तो मजबूरी है.....