ग़ज़ल

सोचिये गर दो दिलों में राब्ता हो जायेगा।
हिचकियों का खूबसूरत सिलसिला हो जायेगा।

दिल मेरा बच्चा है अपने पास ही रखिये इसे
लग गयी इसको हवा तो बेवफा हो जायेगा।

जिस्म था बेजान इसमें जान तुमने फूंक दी
धड़कनें चलने लगी हैं फायदा हो जायेगा।

सुर सधा है आपका तो अपनी धुन में गाइये
संग मेरे गाएंगे तो बेसुरा हो जायेगा।

इस तरह से घूर कर मत देखिये हम को जनाब
दिल में इन आँखों के ज़रिये रास्ता हो जाएगा।

प्यार करना या न करना मुस्कुराकर देख ले
मेरा दावा है सफे पर हाशिया हो जायेगा।

ये शहर है पत्थरों का शख्स हर पत्थर का है
देर तक देखोगे तो क्या आईना हो जायेगा?

Comments

Unknown said…
This comment has been removed by the author.
Unknown said…
Bahut badhia sir.kya khub hai.
KUMAR SNEH said…
चला जाए अब कोई आपकी कविता छोड़कर
ऐसा कोई मोड़ नही है।

आपकी आवाज के तो सब दिवाने है ही लेकिन
आपकी शब्दावली का भी तोड़ नही है।।

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