संस्मरण - एक फ़ेन पुलिस अधिकारी

इसे पूर्व जन्मों का प्रताप कहूँ या बड़ो का आशीर्वाद कुछ समझ मे नही आता है। एक पुलिस अधिकारी जो पिछले 20 वर्षो से मुझे दूर से कवि सम्मेलनों में सुनता रहा, मुझे चाहता रहा, मुझे फॉलो करता रहा, और मुझे देवता मानता रहा, लेकिन कभी बात नही हुई। जब से फेसबुक और यू ट्यूब आया तब से रात रात भर मुझे सुनने लगा और गत 2 वर्षों से फोन पर वार्तालाप तथा वाटस एप पर चेटिंग कर अपना आदर प्रस्तुत करता रहा। उसके लिए कल शनिवार दिनांक 10 जनवरी के दिन किसी त्योहार से कम नही था जब गोमती नगर के विपुल खंड में होने वाले कवि सम्मेलन में उसे मुझसे मिलने आना था। अपनी ड्यूटी आदि दायित्वों को सही से समायोजन करने के बाद जब रात के साढ़े ग्यारह आलमबाग से गोमती नगर आये तो मेरा काव्यपाठ समाप्त हो चुका था। लेकिन कवि सम्मेलन समाप्ति के बाद जब वह भीड़ को चीरते हुए मंच पर आए और मेरे पास आकर ज़ोर से सेल्यूट मारा और मेरे पैर छुए तो मुझे उन्हें पचानाने में बिल्कुल परेशानी नही हुई। मैंने फिर भी पूछने के अंदाज़ में कहा- नीरज द्विवेदी? तो वो बोले यस सर। उनका पहला वाक्य था - सर आप मेरे अभिताभ बच्चन हो, और आज अपने हीरो के सामने खड़े होकर मुझे बहुत खुशी हो रही है। छरहरा से सुंदर नोजवान भावुकता भरी मुस्कान समेटे, उसका झटके से सेल्यूट मारना मुझे अंदर तक भिगो गया। मुझे ऐसा लगा जैसे विपुल खंड के तमाम श्रोता और सभी कवियों के सामने मानो मेरा कद बहुत ऊंचा होगया हो। लेकिन वह पुलिस का अधिकारी निश्चल भाव से मुझे घूरे जा रहा था और मैं लगातार प्रशंसक श्रोताओ के साथ सेल्फी खिंचवाने में न चाहते हुए भी व्यस्त हो रहा था। जैसे हो थोड़ा सा स्पेस मिलता मैं उससे बात करने लग जाता। जैसे तैसे मंच से नीचे उतर कर उसके साथ पार्क से बाहर आया तो उसने बताया कि अपने सारे दायित्वों को दरकिनार कर आपसे मिलने का सपना मुझे इतनी दूर खींच लाया है सर, कल आप मेरे साथ रहिये। मैने विवशता बताते हुए कहा कि कल मुझे सहित्यगन्धा के सम्मान समारोह में शाम 6 बजे तक व्यस्त रहना है इसलिए मुश्किल होगा। तो वह बोले कोई बात नही सर आप मुझे जगह बता दीजिए मैं वहां से आपको ले लूँगा आप मेरे साथ डिनर करिये फिर मैं आपको जहाँ कहेंगे छोड़ दूंगा। मैने जैसे ही स्वीकृति दी तो उन्होंने एक बार फिर मेरे पैर छू लिए और चलने को जैसे ही तैयार हुए तो एक बार फिर से पुलिसिया सेल्यूट मारा तो मैंने उन्हें आगे बढ़ कर सीने से लगा लिया। इसके बाद भी वह फिर तब तक वहां से नहीं गए जब तक मुझे विदा नही कर दिया। मेरी कर का गेट खोला मुझे बिठाया, फिर बंद किया और एक बार फिर सेल्यूट मारा, हमारी कार आगे बढ़ गयी तब वह गए।

अगले दिन साहित्य गंधा का सम्मान समारोह राज्यपाल के आने के कारण समय से सम्पन्न हो गया। ठीक 6 बजे नीरज द्विवेदी का फोन आगया- बोले सर मैं कितनी देर में आजाऊँ आपको लेने? मैने कहा आप तुरंत आजाओ। आलमबाग से गोमतीनगर की दूरी अधिक होने के कारण लगभग 1 घंटे बाद वो एक कांस्टेबल के साथ मुझे लेने होटल आगये। मेरे साथ आज की सम्मानित कवियत्री रुचि चतुर्वेदी भी चलने को तैयार हो गईं। क्यो कि संयोग से उन्हें भी उसी स्थान पर आना था। गाड़ी में जब बैठे तो उन्होंने कांस्टेबल के हाथ से चाबी लेकर कहा, लाओ सर के लिए आज गाड़ी हम खुद चलाएंगे और यह कह कर ड्राइविंग सीट पर बैठ गए। मुझे उनके इस आदर भाव पर स्नेह आगया और मैं उनके बराबर वाली सीट पर बैठ गया। रास्ते भर बहुत सारी बातें करते आये वो, अपने घर परिवार की भी बातें कीं। उन्होंने बताया कि मेरी वाइफ के दो ही दुश्मन हैं, एक आप और दूसरी सोनाली बेंद्रे। मैं ड्यूटी के बाद घर पर सिर्फ आपके गीत सुनता हूँ या सोनाली बेंद्रे की फिल्में देखता हूँ। रास्ते भर निश्छलता पूर्वक मुझे लखनऊ के प्रसिद्ध मार्केट, जगहों के बारे में इस तरह बताते आये जैसे मैं पहली बार इन रास्तों से गुजर रहा हूँ मैं भी भोला बन कर देखता चला आया। आलमबाग क्षेत्र में प्रवेश करते ही जैसे ही जाम से सामना हुआ तुरंत फोन करके रास्ता साफ कराया गया। मैंने यूं ही मज़ाक में कहा, देखिए आज हमारी कीमत किसी मंत्री से कम नही है जो पुलिस के इतने बड़े अधिकारी हमारे लिए गाड़ी ड्राइव कर रहे हैं और आगे से आगे रास्ता भी साफ हो रहा है इस पर नीरज बोले नहीं सर आपका ओहदा उनसे भी ऊपर है किसी मंत्री की गाड़ी एक कांस्टेबल या चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी से ऊपर नही चलाते। यहां तो आपके लिए मैं गाड़ी चला रहा हूँ।

आलमबाग मोड़ पर अधिक जाम था तो साथी कांस्टेबल ने उतर कर अपनी गाड़ी को आगे निकाला। 2 किलोमीटर चलने के बाद आलमबाग बस स्टेशन के सामने जिस होटल में हमारे डिनर की व्यवस्था की गई थी उसके सामने जैसे ही गाड़ी रुकी एक नवयुवक बदहवास सा मोटर साइकिल पर आया और मुझे कार का शीशा नीचे करने को कहा। मैने बिना डर के शीशा नीचे कर दिया क्यो कि मेरे साथ तो पुलिस बैठी थी। मेरा कोई क्या बिगाड़ सकता था। जैसे ही शीशा नीचे हुआ वो बोला -सर आप विष्णु सक्सैना हैं? मैने कहा-हाँ तो हाथ अंदर करके पैर छूते हुए बोला- सर पीछे 2 किलोमीटर से पीछा करता आरहा हूँ आपकी गाड़ी का जब वह जाम में रुकी थी। वहीं मेने आपको पहचान लिया था, लेकिन कन्फर्म नहीं था, सोचा आप इस गाड़ी से कहीं न कही तो रुकेंगे वहीं आपसे पूछ लूँगा। तो आपके पीछे चला आया। सर मैं आपका बहुत बड़ा वाला फेन हूँ। आपको बहुत सुनता हूँ यूट्यूब पर। इस बात पर नीरज बोले देख लिया सर आपके कितने मुरीद हैं आपको पता ही नहीं।

हम लोग होटल में जैसे ही प्रवेश हुये उसका रिसेप्शनिस्ट मुझे शायद पहले से जानता था। जल्दी से एक सेल्फी ली , कमरा खुलवाया, खाने का ऑर्डर दिया। थोड़ी देर में ही नीरज के बोस कोतवाल आलमबाग श्री ब्रजेश सिंह जी मुझसे मिलने आगये। उन पर ज़िम्मेदारियाँ अधिक होती हैं। इसलिए अधिक देर न रुक सके लेकिन जितनी देर रहे गदगद रहे। उनके जाने के बाद नीरज बोले- सर मेरे साहब आप से मिलने आये मेरे लिए ये दिवाली का सबसे बड़ा गिफ्ट है आज। खैर, खाना आया , हम दोनों में से किसी को भूख नही थी फिर भी नीरज की मुहब्बत का मान रखने के लिए एक एक रोटी खाई और गाड़ी पकड़ने के लिए चल दिए अपने गंतव्य को। गाड़ी छूटने में सिर्फ 5 मिनिट रह गईं थी। जल्दी से मुझे एक जगह खड़ा करके खुद ही भागदौड़ कर के सही प्लेटफार्म पर मुझे ले गए मुझे सकुशल मेरी सीट पर बिठाया जब मुझसे विदा हुए मेरे पैर छुए और जैसे ही मैंने उन्हें गले लगाया तो मैं भी भावुक हो गये और वो भी। हम दोनों में एक दूसरे के चेहरे की तरफ देखने की हिम्मत नही हो रही थी। अगर देख लेते तो शायद आंसुओ को रोक नहीं पाते। हम दोनो फिर भी अंदर से भीगे हुए थे। ऐसा लग रहा था जैसे हमारे और उसके बीच मे कोई पूर्व जन्म का रिश्ता जुड़ा हुआ है। नीरज ने एक बार फिर सेल्यूट मारा और बिना कुछ कहे मुड़ कर चल दिये। अगले दिन रुचि चतुर्वेदी ने मुझे फोन पर बताया कि आपसे अलग होने के बाद जब वह आये तो लिट्रेली उनकी आंखों से आँसू झर रहे थे। वो सच मे आपके निश्छल भक्त हैं। उनके इस समर्पित भाव को देखकर मैं कल से अभिभूत हूँ जब तक आप उनके साथ रहे उन्होंने अपनी ड्यूटी की भी परवाह नहीं की उन्होंने आपकी सेवा ही अपनी ड्यटी समझी। उन्होंने 10 बजे मुझे भी सकुशल गाड़ी में बिठाया तब गए।


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