संस्मरण- गुम हुआ ब्रीफकेस

जब जब चेन्नई एयरपोर्ट पर उतरता हूँ, तब तब एक पुरानी घटना मुझे रोमांचित कर कभी गलती न करने की प्रेरणा देती  रहती है।
आज भी जब अजात शत्रु और शम्भू शिखर के साथ चेन्नई की धरती पर पैर रखा है तो पुरानी दुर्घटना चलचित्र की भांति आंखों के सामने तैर रही है....
कितने वर्ष पहले की बात है ये तो अनुमान नहीं लेकिन घटना है बहुत खतरनाक। विगत लगभग 10 वर्ष पहले चेन्नई आना हुआ था एक कवि सम्मेलन में। जिस फ्लाइट में मैं था उसी में वेदव्रत बाजपेयी, अनु सपन समेत दो कवि और थे। वेदव्रत उस वक्त के व्यस्ततम कवियों
में गिने जाते थे इसलिए उनका सूटकेस बड़ा होता था। मेरी अटेची छोटी सी थी।
जब हम एयरपोर्ट पर उतरे तो एक ही ट्राली में सभी का सामान रख लिया गया। मेरा ब्रीफकेस छोटा सा था इसलिए ट्रॉली के पीछे वाले स्पेस में ऐसा फिट होगया की सामान्य रूप से इन लोगों की बड़ी अटेचियों में दिखाई भी नहीं दे रहा था। मेरा व्यक्तित्व भी शुरू से मेरे ब्रीफकेस की तरह ही रहा है। जैसे ही गाड़ी हमे लेने आई हम सब लोग रईसों की तरह बिना ये परवाह किये कि हमारा समान भी गाड़ी में जाना है, जल्दी जल्दी कूद कर गाड़ी में बैठ गए। सोचा ये काम तो ड्राइवर का है, रख ही लेगा। खैर ड्राइवर ने सब सामान गाड़ी में रख लिया और होटल की तरफ चल दिया। एयरपोर्ट से होटल तक का रास्ता एक घंटे का था। हम होटल पहुचे, पहले खुद उतरे फिर समान। सबकी अटेचियाँ तो उतर गईं लेकिन मेरी अटेची जब नही उतरी तो मैं परेशान हो गया। ड्राइवर से पूछा तो उसने बताया ट्राली में जितना सामान था मैंने रख लिया था। ड्राइवर भी बेचारा घबरा उठा, मेरी तो हालात ही खराब हो रही थी, सारे कपड़े उसी में थे, रात को प्रोग्राम कैसे करूँगा ये विचार तेज़ी से आ जा रहे थे। मुझे कन्फर्म हो गया अटेची ट्राली के उस स्पेस में फिट आने की वजह से ड्राइवर को दिखाई नहीं दी और वहीं रह गयी। मैंने ड्राइवर को वापस एयरपोर्ट चलने को बोला इस उम्मीद में कि शायद मिल जाए। एक तरफ यह भी लग रहा था कि इतने बड़े एयरपोर्ट पर कौन छोड़ेगा उस अटेची को इतनी देर। एक स्थानीय व्यक्ति को साथ लिया जिससे की तमिल भाषा समझने में आसानी हो सके। एक घंटे का
सफर करके जब एयरपोर्ट दुबारा पहुंचा तो पूरा माहौल बदला हुआ दिखा। पूरा एयरपोर्ट छावनी में बदल चुका था। हर तरफ सुरक्षा गार्ड, चारों ओर डॉग स्क़वेड दौड़ रहे थे। बहुत आश्चर्य हुआ यह देखकर। फिर मैंने सोचा शायद प्रधान मंत्री या राष्ट्रपति आ रहे होंगे इसीलिए इतनी सुरक्षा व्यावस्था कडी कर दी है।
मैंने हिम्मत करके एक सुरक्षा गार्ड से कहा-भैया मेरी एक छोटी सी अटेची किसी ट्रॉली पर छूट गयी है। उसने मुझे घूर कर देखा- बोला, वो सामने वाले साहब हैं उनके जाकर मिलो। मैं उन साहब के पास गया और उनसे भी वही प्रश्न दुहराया। वो गुर्राते हुए बोला- अच्छा!  हम तुम्हारे नोकर हैं जो तुम्हारे ब्रीफकेस की देखभाल करें, जाइये अंदर बड़े वाले एयरपोर्ट अधिकारी के पास वो बताएंगे आपको। मुझे लगा कुछ गड़बड़ है। आर्मी के लोग इधर से उधर भाग रहे थे। मै अधिकारी के ऑफिस में पहुँचूँ उससे पहले ही एक सिपाही ने रोक लिया- मैंने कहा- भैया मेरा सूटकेस....बस इतना ही कह पाया था कि उसने मुझे डांटते हुए कहा- अच्छा , वो तुम्ही हो? तुम्हारी वजह से 2 घंटे से इतनी आर्मी परेशान है। पूरा एयरपोर्ट डिस्टर्ब हो गया है। चलिये अंदर.....वो मुझे अंदर लेकर गया। मेरे बारे में बताया तो अधिकारी बोले...आइये ..आइये।
मैं डरा सहमा सा नमस्कार करने लगा।
उसने मेरी नमस्ते का कोई जबाब नही दिया। मुझसे ब्रीफकेस छूटने के कारण पूछा। मैंने विस्तार से बताया तो वह लापरवाह होकर बोला आपके ऊपर इस अपराध के लिए फाइन लगेगा। देख लीजिए अपनी अटेची को । मैने देखा मेरी अटेची का ताला तोड़ा जा चुका था सभी सामान बाहर निकाल कर उसकी अलग अलग गिनती करके मुझे पेनाल्टी की रसीद हाथ मे दे दी। मेरा समान सब ज़मीन पर बिखरा पड़ा था और रसीद हाथ मे। पेनाल्टी 6000 हज़ार रुपये। मैंने उनसे बहुत विनती की, माफी भी मांगी, पेनाल्टी कम करने की भी गुहार लगाई लेकिन कोई असर न हुआ अधिकारी पर। उसने कहा- भविष्य में आपको यह सबक देने के लिए पेनल्टी लगाई गई है। आपकी इस छोटी सी भूल ने हमारी आर्मी का, डॉग स्क्वेड का तथा पूरे सुरक्षा सिस्टम का जो 2 घंटा खराब किया है उसका हर्जाना तो आपको देना ही पड़ेगा। आतंकवाद का समय है, लावारिस कोई भी वस्तु संदिग्ध दिखती है तो हमारा पूरा सिस्टम हरकत में आजाता हैं हमारी छोटी सी चूक से बहुत बड़ी दुर्घटना घट सकती है। ये हर्जाना तो देना ही होगा।
बाय द वे, उस वक्त मेरे पास रुपये थे। मैने उनसे बहस करना उचित न समझा।क्यो कि मैं गलती पर था। पेनल्टी के पैसे भरे, रसीद ली और अपना ब्रीफकेस लेकर जैसे ही चलने लगा। एयरपोर्ट अधिकारी ने खड़े होकर कहा- मिस्टर सक्सैना, फ्यूचर में कभी भी अपने सामान को छोड़ कर कहीं मत जाइए। गाड़ी में भी पहले अपना सामान रखिये फिर बैठिए।
मैंने सहमति में सिर हिलाया, धन्यवाद दिया और अटेची लेकर एयरपोर्ट से वापस होटल आकर राहत की सांस ली। तब से आज तक ऐसी गलती मुझसे नहीं हुई। जब जब चेन्नई एयरपोर्ट पर उतरता हूँ, ये घटना याद करके सिहर जाता हूँ।
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Comments

Ashu said…
श्रीमान मैं आपकी लेखनी का बहुत बड़ा आशिक़ हूँ ।
Ankit Patel said…
आपका यह संस्मरण बहूत ही आकर्षक है । ऐसी घटना अक्सर लोगों के साथ घटित हो सकती है।

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