रंग भरना जानता हूँ

चुनाव भी हो चुके,
परिणाम भी आ चुके,
हार जीत भी हो चुकी,
जिन्हें आंसू मिले उनके प्रति संवेदनाएं और जिनको मुस्कानें नसीब हुईं उन्हें बधाइयां। अब तो कोई काम नहीं हैं हमारे सिस्टम पर? अगर थकान उतारने का बहाने से सोने जा रहे हो तो कृपया अब रहम खाओ। अब इस उजड़ते हुए गुलशन की तरफ भी देख लो, जहां न जाने कितनी कलियों और फूलों की पंखुरियाँ बेजान होकर इसकी सुंदरता को कुरूप कर रही हैं। इन पौधों की जड़ों में सहानुभूति के पानी की ज़रूरत है, इन्हें जीवन दायी दवाइयों जैसी खाद की सख्त ज़रूरत है, इनके लिए शुद्ध वायु के रूप में ऑक्सीजन की बहुत आवश्यकता है। आइए, सख्त चाबुक चला दीजिये उनकी पीठ पर जो इस उपवन की सुंदरता को खराब करना चाहते हैं, सबक सिखा दीजिये उन सभी लोगों को जिन्होंने आपदा को अवसर में बदलने के गलत मायने निकाल कर मानवता को शर्म सार कर दिया है। 
बुरा मत मानिए शिकायत बगीचे के माली से ही की जाएगी। हृदय की तकलीफ को वर्तमान से ही कहा जा सकता है, अतीत से नहीं। अब सारी मिथ्या ज़िम्मेदारियों से मुक्त होकर इंसानियत को बचाना आपका पहला धर्म है। अगर ये बची रही तो रंग बिरंगे फूलों के इस उपवन का माली होने पर आप गर्व से सिर उठाकर चल भी पाएंगे, वरना कांटो के मसीहा कहलाने में शायद आपको आत्मग्लानि ही होगी। दिखा दीजिये जगत को कि उपवन की वीरानी को कैसे बचाया जाता है, कैसे नई नई कलमें लगाकर अलग किस्म के पेड़ों पर रंगीन और कहीं न मिलने वाली गंधों के फूलों को सृजित किया जा सकता है। कैसे फिर से इसे हरा भरा बनाया जा सकता है। शायद मेरा ये शेर आपके अंदर कुछ जोश भर सके.....

हुई  है  जिंदगी  बेरंग  तो क्या,
मैं फिर से रंग भरना जानता हूँ।

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