अब बच्चे बड़े हो गये हैं..
कभी कभी कोई छोटे मुंह बडी बात करे तो बहुत गुस्सा आता है। लेकिन कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं कि यही बाते गुस्से की जगह प्यार पाने की अधिकारिनी हो जाती हैं। मेरा बडा बेटा लखनऊ में बी-टेक की अंतिम सीढियों पर खडा है। यूँ रोजाना उससे बात होती थीं हमेशा मस्ती के अन्दाज़ में बात करता था। क्यों कि मेरा रिश्ता पिता पुत्र का कम एक दोस्त का अधिक है। बी-टेक करने के बाद उसे क्या करना चाहिये ये हमसे अधिक अब वो जानता है। कल जब मैने उससे लखनऊ छोड़ कर नोएडा या दिल्ली से आगे की पढाई एम-टेक के बारे में सुझाव दिया तो उसने बड़े ही तर्क पूर्ण ढँग से ऐसा समझाया कि मैं निरुत्तर हो गया। वो बोला कि पापा जी मैं क्यों इतने महँगे शहर में जाऊं ? मुझे सिर्फ एक साल काटनी है गॆट की तयारी के लिये। मै यही जोब ढूढ कर आय भी करता रहूंगा और अपनी एम-टेक के प्रवेश की तयारी भी करता रहूँगा। मँहगे शहर में आय से अधिक व्यय हो जायेगा। जिस समय वो मुझे समझा रहा था उस समय ऐसा लग रहा था जैसे कि मैं उसका बेटा हूँ।
मेरा बेटा कब इतना बडा हो गया , कब इतना समझदार हो गया, कवि सम्मेलनों की भाग दोड़ और क्लीनिक की व्यस्तता में कुछ पता ही नहीं चला। कल उसकी बातों ने दिमाग की नसों का व्यायाम और पलकों की कोरें गीली करने का काम एक साथ किया।
मेरा बेटा कब इतना बडा हो गया , कब इतना समझदार हो गया, कवि सम्मेलनों की भाग दोड़ और क्लीनिक की व्यस्तता में कुछ पता ही नहीं चला। कल उसकी बातों ने दिमाग की नसों का व्यायाम और पलकों की कोरें गीली करने का काम एक साथ किया।
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kavi deepak gupta
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