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Showing posts from May, 2011

अमेरिका के संस्मरण--2011.....(जब परदेसी विश्वविद्यालय में अपना हिन्दी विभाग दिखा.....)

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नार्थ केरोलाइना- मिडलेंड से प्रोग्राम करने के बाद हम तीनो हवाई जहाज से IHA की एक स्तम्भ राले धरम में श्रीमती सुधा ओम धींगरा के निवास पर पहुँच गये। यहाँ हमको 4 दिन रुकना था। यहाँ की मेहमान नवाज़ी के सभी कवि कायल हैं। खाने से लेकर सोने तक की सारी सुविधाओं का बड़ी बारीकी से ध्यान रखा जाता है यहाँ । बहुत बड़ा घर , बहुत सुन्दर साहित्यिक माहोल और बहुत बुद्धिमान और सीधे-सादे से सुधा जी के हमसफर पति श्री ओम जी। बहुत मन लगता है सभी भारत से गये हुये कवियों का , इस घर में। सुधा जी अपने प्रोग्राम को सफल बनाने के लिये अपनी मज़बूत टीम के साथ मन प्राण से लगती हैं , इसलिये अपने मक़सद मे सफल हो जाती हैं। हर बार की तरह इस बार भी कवि सम्मेलन सुपर हिट हुआ। सफलता के मद में खूब छक कर भोजन किया और खूब सोये। अगले दिन घर में ही बने खूबसूरत थियेटर में पडोसन देखी। हर गाने पर हम तीनों ने खूब नृत्य किया। अगले दिन सुधा जी से हमने आग्रह किया कि हम लोग अमेरिका की सबसे प्राचीन यूनिवर्सिटी घूमना चाहते हैं। उन्होंने वहाँ के प्रोफेसर अफरोज़ ताज़ और जान काल्वेल्ट से कह कर सब तय कर के हमें खुद वहाँ लेकर गयीं। आज उनक

अमेरिका के संस्मरण--2011..... (जब कोशिकायें धड़क उठीं.....)

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इस बार शिकागो में हमारे एक मित्र बबराला निवासी आकाश शर्मा के बड़े भाई सुदेश शर्मा और उनकी भाभी श्रीमती रचना मिश्रा(एटा निवासी) से पहली बार मुलाकात हुई। ये दोनों ही पति-पत्नी बायोटेक्नोलोजी में शोध करने के बाद शिकागो में एक प्रतिष्ठित अस्पताल में साइंटिस्ट हैं। शिकागो शहर में पहुँचने से पहले ही इनके घर जाने का प्रोग्राम तय हो चुका था। जिस दिन कवि सम्मेलन था उस दिन तो ये लोग अपनी व्यस्तताओ के कारण नहीं आपाये लेकिन अगले दिन प्रात: 9.30 पर दोनों लोग मुझे ले जाने के लिये होतल आगये। उस दिन सुबह से ही मौसम खराब था , तेज़ हवाओं के साथ तेज़ बारिश अपना रंग दिखा रही थी। रास्ते भर गप-शप करते हुये 30 मिनिट बाद हम लोग डाउन टाउन स्थित फ्लेट पर आ गये। रास्ते में सुदेश मुझे जितने जटिल लगे , रचना उतनी ही सरल लगीं। घर में एक बहुत प्यारी सी 8 माह बच्ची थी जिसकी देखभाल गुजरात की एक आया कर रही थी। भारी नाश्ता करने के बाद मुझे लेकर मिशीगन लेक के किनारे ले जाने के लिये जैसे ही बाहर आये , तेज़ हवाओं ने पूरे शरीर को हिलाकर रख दिया।10 कदम चलने के बाद मैंने अपने स्वास्थ्य को देखते हुये आगे चलने के लिये अपनी अस

अमेरिका के संस्मरण--2011..... (पश्चिम में पुरवाई .....)

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कितना सुखद आश्चर्य होता है जब कही कुछ अप्रत्याशित रूप से बहुत दूर अपना सा कुछ मिल जाए | मन करता है इसको अपनी आँखों में भर लू दिल कहता है इसे अपने भीतर समेत लूं और भावनाएं मचल उठती है इनको महसूस करने के लिए | आप यकीन मानिये हमने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि बीस हज़ार मील दूर हमारी मिटटी इस तरह महकती मिलेगी कि हम उसकी महक को जिंदा नाचते गाते देख ही नहीं सकेंगे बल्कि उसके गवाह भी बन जायेंगे | अमेरिका जिसके बारे में कहा जाता है कि ये देश ऐसा है कि दुनिया भर को अपनी ओर खींचता है और फिर अपने में ही समेत कर उसका अस्तित्व भी ख़त्म कर देता है लोग़ अमेरिका को ड्रग की तरह समझते हैं जिसकी चपेट में आकर आदमी अपनी पहचान तक खो देता है.... लेकिन हम एक बात अब पूरे दावे के साथ कह सकते हैं कि हिन्दुस्तान का युवा अब समझ गया है कि हमे अपनी विशिष्ट्पहचान बनाए रखने के लिए अपनी मूल पहचान को ज़िंदा रखना पड़ेगा | और यह तभी संभव है जब युवा वर्ग अपनी संस्कृति , अपनी परम्पराएं तथा अपने रीति रिवाज़ बचाए रखने के लिए मुस्तैदी दिखाए

अमेरिका के संस्मरण--2011.....(जब दुर्घटना होते-होते बची.....)

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शिकागो-- हमें रिचमंड से कवि सम्मेलन करने के बाद शिकागो पहुँचना था। सुबह डा. धाकर, राज दुबे, और राम जी एअरपोर्ट पर छोडने आये। बोर्डिंग पास पहले से ही हमारी पास थे, बस सामान चेक इन कराना था। हमने रिचमंड से ही सुभाष पांडे जी को फोन कर दिया था कि आप जब हमें लेने आयें तो बड़ी वेन लेकर ही आयें क्यों कि हम लोगों का सामान अधिक है। शिकागो पहुँचने के बाद बेगेज क्लेम से सामान लेकर हम लोग जैसे ही बाहर निकले तो सुभाष जी गेट पर ही मिल गये। हम लोगों का सामान देखकर थोडा सा चौंके, बोले- गाडी तो पार्किंग मे खड़ी है, आप वहीं सामान लेकर चलिये। शिकागो एअरपोर्ट बहुत बडा होने के कारण हमें सामान ले जाने में बड़ी मशक्कत करनी पड़ी। पहले लिफ्ट में गये, फिर स्वचलित सीढ़ियों से नीचे आना था, ये सीढ़ी बहुत लम्बी थी। प्रवीन की एक अटेची सुभाष जी ने पकड़ ली थी इसे लेकर वो नीचे उतर गये, दूसरी अटेची स्वयं प्रवीण लेकर आसानी से उतर गये। इसके बाद में अपनी एक अटेची ऊपर ही छोड़ कर सर्वेश से ये कह कर कि कोई जल्दी नहीं है आराम से सामान नीचे उतर जायेगा, लाल वाली अटेची साथ में लेकर आधी सीढ़ियाँ पास कर ही पाया था कि न जाने क्य

अमेरिका के संस्मरण--2011.....(यारों के यार, अशोक कुमार.....)

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डलास- टेक्सास-- मोदी नगर, गाज़ियाबाद निवासी अशोक कुमार जी पिछले 35 वर्षों से अमेरिका के टेक्सास प्रांत के डलास शहर में रह रहे हैं। बाहरी बनावट देख कर उनके व्यक्तित्व और उनकी सहजता का अनुमान नहीं लगाया जा सकता। उनका मस्त स्वभाव, फक्कड़ पहनावा, लापरवाह रहन-सहन उनके वीत रागी होने का परिचायक है। जब हँसेगे तो खुलकर हँसेगे, जब हँसायेंगे तो जीभर के हँसायेंगे। विलक्षण स्मरण शक्ति के धनी, पूरे अमेरिका की भोगोलिक जानकारी के लिये इंसैक्लोपीडिया कहे जाने वाले अशोक कुमार जी हृदय से बडे भले भी हैं। कवियों की मदद करने में सबसे आगे रहते हैं। सुरेन्द्र सुकुमार बताते हैं कि अमेरिका में मेरी आमदनी कराने के लिये मेरी केसिटों की अनेकों कोपी कराके काव्य प्रेमियों तक पहुँचाई। ऐसे उदारमना अशोक जी को हिन्दी काव्य जगत के सभी प्रसिद्ध कवि अच्छी तरह जानते हैं। मेरी जान पहचान 1996 से है, जब मैं पहली बार अशोक चक्रधर और प्रदीप चौबे के साथ अमेरिका गया था। फिर दूसरी और तीसरी बार उनके ही द्वारा संयोजित कविसम्मेलनों मे गया। उन दिनों अशोक जी को बहुत नज़दीक से देखने का मौका मिला। तब वो एक छोटे से एपार्ट

अमेरिका के संस्मरण----2011.....(जब हम उम्मीद से पहले पहुँच गये.....)

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कनाडा - टॉरेंटॉ---- न्यूयार्क का कार्यक्रम करने के बाद हमें न्यूयार्क शहर घूमने के लिये पर्याप्त रूप से दो दिन मिले थे , बुधवार को न्यू जर्सी मे सुरेन्द्र तिवारी के निवास पर डिनर में शामिल होकर , श्री केशरी नाथ त्रिपाठी के सानिध्य में कवि गोष्ठी करके गुरुवार की सुबह कनाडा के लिये रवाना होना था। सुरेन्द्रनाथ तिवारी परमाणु संस्थान में बहुत बडे इंजीनियर हैं , उन्हें अपने काम पर जाना था तो हम लोगों को सुबह ही नेवार्क एअर पोर्ट पर छोड कर अपने वर्क पर चले गये। हमारी उड़ान न. 126 थी , जब हम सामान चेक इन कर रहे थे तो हमें कहा गया के उड़ान न. 124 उससे पहले जा रही है , अगर आप चाहें तो मै आपको उसमें भेज सकता हूँ। हमने मना कर दिया , हमारा जो निर्धारित जहाज है हम उसी में जायेंगे। सुरक्षा जाँच के बाद हम लोग निर्धारित गेट पर आ गये। मौसम बहुत खराब हो रहा था। दो घंटे बाद घोषणा हुयी कि 126 का कोई समय निश्चित नही है , जिन यात्रियों को टोरेंटो जाना है वो उड़ान न. 124 में अपना बोर्डिंग पास बदलवा के बैठ सकते हैं। हम लोग पहले ही बहुत लेट हो गये थे , सो बिना विचारे औपचारिकतायें पूरी कर के 124 में