अमेरिका के संस्मरण--2011..... (जब कोशिकायें धड़क उठीं.....)
इस बार शिकागो में हमारे एक मित्र बबराला निवासी आकाश शर्मा के बड़े भाई सुदेश शर्मा और उनकी भाभी श्रीमती रचना मिश्रा(एटा निवासी) से पहली बार मुलाकात हुई। ये दोनों ही पति-पत्नी बायोटेक्नोलोजी में शोध करने के बाद शिकागो में एक प्रतिष्ठित अस्पताल में साइंटिस्ट हैं। शिकागो शहर में पहुँचने से पहले ही इनके घर जाने का प्रोग्राम तय हो चुका था।
जिस दिन कवि सम्मेलन था उस दिन तो ये लोग अपनी व्यस्तताओ के कारण नहीं आपाये लेकिन अगले दिन प्रात: 9.30 पर दोनों लोग मुझे ले जाने के लिये होतल आगये। उस दिन सुबह से ही मौसम खराब था, तेज़ हवाओं के साथ तेज़ बारिश अपना रंग दिखा रही थी। रास्ते भर गप-शप करते हुये 30 मिनिट बाद हम लोग डाउन टाउन स्थित फ्लेट पर आ गये। रास्ते में सुदेश मुझे जितने जटिल लगे, रचना उतनी ही सरल लगीं। घर में एक बहुत प्यारी सी 8 माह बच्ची थी जिसकी देखभाल गुजरात की एक आया कर रही थी। भारी नाश्ता करने के बाद मुझे लेकर मिशीगन लेक के किनारे ले जाने के लिये जैसे ही बाहर आये, तेज़ हवाओं ने पूरे शरीर को हिलाकर रख दिया।10 कदम चलने के बाद मैंने अपने स्वास्थ्य को देखते हुये आगे चलने के लिये अपनी असमर्थता व्यक्त कीक्यों कि मेरी विवशता थी, अभी 8 प्रोग्राम बाकी थे अगर तबियत खराब हो जाती है तो मेरा तो यहाँ आना बेकार हो जायेगा। मेरे फैसले से ये लोग थोड़े मायूस ज़रूर हुये,लेकिन समय तो काटना ही था इस इरादे से रचना जी ने अपनी लेब दिखाने का प्रस्ताव मेरे सामने रखा, मुझे भी बन्द वातावरण की तलाश थी इसलिये मैंने तुरंत हाँ कर दी।
10 मिनिट पैदल चलने के बाद हम उनकी लेब में पहुँच गये। ये देखना मेरे लिये पहला और नया अनुभव था। दोनों ही लोगों ने बड़े चाव से मुझे एक-एक चीज़ का अवलोकन कराया। फिर रचना जी एक विशेष कक्ष में ले गईं जहाँ वो काम करती हैं। वहाँ उन्होंने बताया- कि हम मानव की हृदय की गति को लम्बे समय तक चलाये रखने के लिये या यूँ कहें मनुष्य ले जीवन को और लम्बा करने के लिये क्या कुछ नया हो सकता है उस पर वर्क कर रहे हैं। दिल का प्रत्यारोपण किस प्रकार हो, मृत व्यक्ति में नये दिल के माध्यम से पुन:जीवन डालने के दिशा में जो शोध कार्य चल रहे हैं, उनका अवलोकन कराया। जब उन्होंने प्रीज़र्वेटर से निकाल कर हृदय से अलग की गयी एक कोशिका को माइक्रोस्कोप मे दिखाया तो मैंने देखा कि उसके अन्दर का माइट्रोकांड्रिया धड़क रहा है, ये नज़ारा देख कर के मैं तो रोमांचित हो गया। जीवन में चिकित्सकीय अध्ययन के समय प्रयोगशालाओं में मृत कोशिकाओं के माध्यम से ही ज्ञान लिया था लेकिन ये सब देखना तो बस......। जहाँ बाहरी व्यक्ति का जाना निषेध हो वहाँ आपको ये सब देखने को मिल जाये तो मैं समझता हूँ कि बहुत बड़ी बात है। फिर रचना जी ने अपने कम्प्यूटर पर अपने सारे परीक्षणों को एक-एक कर के दिखाया और बच्चों की तरह पढाया। क्यों कि मेडीकल लाइन का हूँ इसलिये मुझे बहुत मज़ा आ रहा था।
और देखते ही देखते 2 बज गये, इतना समय कब बीत गया, पता ही न चला। हम लोग बाहर आ गये। अब मौसम में थोड़ी गर्माहट भी आ गई थी। यहाँ से मुझे डाउन-टाउन दिखाने ले गये, कुछ फोटोग्राफी की, वहीं पर पूर्व निर्धारित समय के अनुसार सुभाष जी, उनकी पत्नी, सर्वेश और प्रवीन मिल गये। सुदेश और रचना जी से सुमधुर यादों के साथ विदा ली और हम सब विवेकानन्द स्मारक की ओर बढ़ गये.....।
Comments