संस्मरण- अरे, इसे सीधा तो करिये विष्णु भगवान****

****अरे, इसे सीधा तो करिये विष्णु भगवान**** ( एक मजेदार संस्मरण )

अभी चार दिन पहले की ही तो बात है। साहित्य गंधा के संपादक श्री सर्वेश अस्थाना ने बताया कि सम्मान समारोह के मुख्य अतिथि माननीय राज्यपाल श्री रामनाईक होंगे, तभी से उनसे मिलने की इच्छा प्रबल हो रही थी। 11 नवंबर को यह आयोजन होना था। एक दिन पहले मैं वहीं था, तो रुक जाना बेहतर समझा। वैसे भी कायदे से मुझे रुकना ही था। क्यों कि एक तो मैं सहित्यगन्धा के संपादक मंडल में मैं परामर्श दाता के पद पर हूँ, दूसरे हमारे आदरेय श्री कृष्ण मित्र जी को  अनवरत गंधा सम्मान भी मिलना था। तो उनके सम्मान में शरीक होना मेरा दायित्व बनता है। दो दिन पहले जब बोर्ड की मीटिंग हुई तो मैंने सर्वेश जी से मज़ाक में कहा, भाई कोई ऐसा काम भी कर देना जिससे मेरा फोटो भी राज्यपाल के साथ खिंच जाए। वो बोले- दादा, कैसी बात करते हो, आप स्वागत समिति में रहेंगे और माननीय राज्यपाल जी का बुके देकर सम्मान भी करेंगे। मैंने मन ही मन सोचा, अरे ये मज़ाक तो सच होने जा रहा है। लेकिन अगले ही 10 मिनिट में सर्वेश ने आदेश दिया- दादा, आप को राज्यपाल जी का जीवन परिचय भी प्रस्तुत करना है। राष्ट्रगान के बाद सीधे आपसे ही यह कार्यक्रम शुरू होगा। हमने सर्वेश को संदेह की दृष्टि से देखा फिर कहा- कहीं तुम हमसे तफरीह तो नहीं ले रहे? वे बोले  नहीं दादा हम सच कह रहे हैं। आप जैसा व्यक्ति अगर यह दायित्व पूरा करता है तो हमारे तो कार्यक्रम की गरिमा में चार चांद लग जाएंगे। चश्मे से झांकती हुई उनकी आंखों में हमे सत्यता लगी तो हमने तुरंत हाँ कर दी। कार्यक्रम वाले दिन सुबह से ही तैयारियां चल रहीं थीं। सुबह से ही सर्वेश फोन पर लोगो को आमंत्रित करने पर लगे हुए थे। उनका उद्देश्य अधिक से अधिक लोगो की उपस्थिति से था। मैं भी राज्यपाल का जीवन परिचय का कई बार रिवीजन कर चुका था, कहीं पढ़ने में कोई शब्द छूट न जाए।
शाम 4 बजे हम सब जब तैयार होकर हाल में गए तो हमने देखा सभागार में सभी आगुन्तको की सीट पर नाम लिखे थे। हमारा कही नाम ही नहीं था। हमने प्रबंध संपादक श्री अभय निर्भीक से पूछा - क्या हम खड़े ही रहेंगे? हमारी या हम लोगों की कौन सी जगह है? अभय मुस्कुराते हुए बोले- नहीं सर, हम खड़े रहेंगे, क्यों कि हम बैठ गए तो प्रोग्राम बैठ जाएगा...... आपकी सीट तो राज्यपाल जी के बराबर में है, आपको वहां बैठना है.......वो देखिए....(उंगली से इशारा करते हुए बताया) हमें उसकी बात पर यकीन नही हुआ, हमने पास जाकर देखा तो बात बिल्कुल सही थी। प्रभु को धन्यवाद दिया कि उसने ये दिन भी हमे दिखा दिया कि भारत देश के सबसे बड़े प्रान्त उत्तरप्रदेश के गवर्नर के बराबर में बैठने का सौभाग्य हमे दे दिया। हम फूले नहीं समा रहे थे लेकिन अगले ही पल स्वयं को संयत किया। ठीक साढ़े 4 बजे राज्यपाल जी के आने की हलचल हो गयी। अगले ही पल वह हाल के अंदर आकर अपनी सीट पर बैठ गए। सभी निर्धारित लोगो को उनके अगल बगल बैठने की घोषणा संचालिका द्वय श्रीमती वत्सला पांडे और सोनरूपा ने की (बैठने वालों में एक हम भी थे)
सर्व प्रथम राष्ट्रगान हुआ, तुरंत बाद माइक पर मुझे बुला लिया गया। मैंने आकाशवाणी उदघोषक के लहजे में 4 मिनिट में पूरा परिचय पढ़ा और अपने स्थान पर बैठ गया। इसके बाद स्वागत समिति द्वारा राज्यपाल जी का एक एक करके स्वागत कराया गया। तभी मेरे अंदर नकारात्मक विचार आने लगे- कहीं मेरा नाम लिस्ट में लिखने से तो नही राह गया, आदि, आदि। लेकिन सर्वांत में मेरा जब नाम बोला गया तो मैं भागकर उस जगह गया जहां बुके रखे थे लेकिन बीच मे ही धवल मिल गये बोले-ताऊ जी ये लो। मैं आनन फानन में घबराहट के साथ बुके लेकर जैसे ही प्रदेश के प्रथम नागरिक राज्यपाल जी के पास गया, तो पहले तो वो मुस्कुराए फिर खुद ही उल्टे बुके को सीधा करते हुए बोले- अरे इसे पहले सीधा तो करो विष्णु भगवान!
मैं भी अपनी घबराहट को अपनी मुस्कान में दबाते हुए बोला- सर आपसे मिलने की उत्सुकता ने सब उल्टा पुल्टा कर दिया और बुके भी उल्टा हो गया। आस पास के अन्य लोगों को मेरी इस गलती का अहसास भी नहीं हुआ, मैं जानूँ या राज्यपाल, हा हा हा हा हा......

Comments

Ankit Patel said…
बहूत ही मनोरम हास्यप्रद संस्मरण है, इसे पढ़ते हुए आपके अंदर के उत्सुकता रूपी डर से भी परिचित हुए।

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