अच्छा कहें कैसे

घर मे कोई खुशी की बात हो तो पार्टी में  मुर्गा और शराब, और अगर कोई ग़म की बात तो उस ग़म को भुलाने के लिए मुर्गा और शराब की पार्टी। मतलब ये कि मुर्गे को तो हर हाल में हलाल होना ही है। आज देश में इंसान की हालत मुर्गे जैसी ही हो गयी है। कहीं शादी में खुशी में चलाई गई बंदूक की गोली से भी लाशें गिर जाती हैं तो कहीं चुनाव में जीतने की खुशी में दंगा फसाद कर लाशें बिछा दी जाती हैं। इन दिनों हमारे देश महामारी की वजह से लाशों की वैसे भी कमी नहीं थी फिर बेवजह दंगा फसाद और आगजनी करके इंसानियत की फसल को क्यों पलीता लगा दिया बंगाल ने। कहा जाता है जीत, प्रसिद्धि और धन की ऊष्मा को पचाना बहुत मुश्किल होता है जिसने इसे पचा लिया समझो इंसान से भी ऊपर देवता हो गया। अब तो बंगाल की धरती के किसान को अपनी खड़ी लहलहाती फसल को देखकर खुश होना चाहिए उसकी रक्षा करनी चाहिए, जिससे पूरे देश और परिवेश में ये संदेश जाए कि यह धरती आज भी विवेकानंद और गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर की धरती है। कोरोना के आने वाले खतरे से सूबे को बचाने का यत्न करना चाहिए। कहीं अस्पतालों में बेड, दवाइयां, इंजेक्शन या ऑक्सीजन की ऐसी किल्लत न हो जाये जैसी पूरे देश मे है। बंगाल को चाहिए वो कोविड को हराने में भी पूरे देश का रोल मॉडल बने जैसे चुनावों में किया है। अगर ऐसा नहीं हो पाया तो बंगाल पूरे देश की नज़रों में शर्मसार हो जाएगा। इस वक्त मुल्क के हालात वैसे भी अच्छे नहीं चल रहे हैं। न जाने किसकी नज़र लग गयी है इस खूबसूरत देश को।
पेश हैं मेरे ये दो शेर-
जल्दी में बिगड़ता है वो हो फ़ैसला या प्यार
भड़के हुए जज़्बात को अच्छा कहें कैसे?
हड़ताल है, दंगे हैं और लाशें हैं हर तरफ 
इस मुल्क के हालात को अच्छा कहें कैसे?

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