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अद्भुत तनजानिया ( संस्मरण ) भाग-3

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14 जनवरी 2018 आज मकर संक्रांति है आज भी सुबह हमें चिड़ियों ने ही जगाया। कौवों की काँव काँव का भी शोर सुनाई दे रहा था शायद को कोई कौवा घायल अवस्था मे था। मैं जल्दी से उठा 8 बज चुके थे। प्रवीण को भी फोन से जगाया। रोज की तरह आज भी मैंने ही चाय बनाई। वंदना को हम मेहमान की तरह लेकर आये थे इसलिए उनकी पूरी सुख सुविधा का ध्यान रखना हमारा दायित्व था। आज भी बैड टी जब तैयार हो गयी तभी उन्हें जगाया। 9 बजे हमारे सिकंदराराऊ के ही तरुण वशिष्ठ और उनकी पत्नी आगये। ढेर सारी आत्मीयता में लिपटा हुआ नाश्ता लेकर। अभी हम लोग नहाए भी नहीं थे। हम प्रवीण और संजना के बिना अकेले नाश्ता करते तो बहुत खराब लगता,और इतना अधिक नाश्ता नहीं था कि उन्हें भी शामिल किया जाता। बहुत दुविधा थी दिमाग में। हमने उनसे निवेदन किया कि आप ये सब यहीं रख जाइये। हम नाश्ता बाद में करके आपके खाली बर्तन घर पहुचा देंगे। दोनों लोग तैयार हो गए इस बात पर। कुछ घर की बात हुईं कुछ गांव की बहुत अच्छा लगा उन्हें भी और हमे भी। उनका आग्रह था हम समय निकाल कर एक बार उनके घर अवश्य आएं। हमने उन्हें आश्वासन देकर विदा किया। फ्रेश हुए तैयार हु...

अद्भुत तनजानिया ( संस्मरण ) भाग-2

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13 जनवरी 2018 विश्व हिंदी दिवस पर कविसम्मेलन खिड़की के परदों से सूरज की चमक झांक कर पलकों पर पड़ी तो बहुत असहज सी लगी, इग्नोर करके फिर सो गया। लेकिन जैसे ही गौरैया की चहचाहट के स्वर कानों में पड़े तो आँखो की नींद ने भी बगावत कर दी। आंखे मसलते हुए घड़ी की तरफ देखा तो साढे आठ बजे चुके थे। बिस्तर से उठा खिड़की से झांक कर देखा पड़ोसी मुंडेर पर 10-12 चिड़ियां फुदक फुदक कर चहचहा रही हैं। मन प्रफुल्लित हो गया। जल्दी से वंदना को जगाया और फुदकती हुई चिड़ियां दिखाईं। हमारे यहां इन चिड़ियों की नस्ल ही खत्म हो गयी है । पिछले 20 सालों से ये आंगन में दिखना बंद होगयी हैं। खैरः मैंने 2 कप चाय बनाई। एक साथ तंजानिया की भोर का आनंद लिया। फोन करके प्रवीण को जगाया। हम लोग फ्रेश होकर 10 बजे डाइनिंग हाल में नाश्ता करने आगये। थोड़ी देर बाद जितेंद्र और पाठक जी भी आगये। सभी लोगों ने साथ मे नाश्ता किया। हमारा आज का शेड्यूल था। 2 बजे तक साइट सीन भ्रमण, खरीद दारी, लंच, और शाम के मुख्य कार्यक्रम की तैयारी करना। नाश्ता करने के बाद 2 गाड़ियों में सभी बैठकर चल दिये तंजानिया के इस सुंदर शहर का भ्रमण करने। आधा घंटे ...

अद्भुत तनजानिया ( संस्मरण ) भाग-१

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स्थान- दार एस  सलाम ( तंजानिया) अवधि- 11 जनवरी से 16 जनवरी तक मुख्य यात्री- डा. विष्णु सक्सैना, डा. प्रवीण शुक्ल सह यात्री- श्रीमती वंदना सक्सैना, श्रीमती संजना शुक्ला आभार- श्री अशोक चक्रधर अवसर- विश्व हिंदी दिवस सौजन्य- स्वर्ण गंगा संस्था एवं भारतीय सांस्कृतिक केंद्र, दार एस सलाम, तनजानिया  यूँ तो अब तक अनेक देशों की यात्राएं हो चुकी हैं लेकिन इस बार की यात्रा हमारे लिए विशेष इसलिए थी कि हम विदेश में भी अपना घर ले गए थे। यात्रा कमदिनों की थी इसलिए मैंने प्रवीण के सामने प्रस्ताव रखा कि क्यों न हम लोग इस बार अपनी अपनी सह धर्माणियो को साथ ले चलें। तुमने भी अभी अपने पिताको खोया है और मैंने भी अपनी माँ के विछोह में हूँ तो ये यात्रा इस अवसाद से निकलने में हमारी सहायता कर सकती है। वो मेरे प्रस्ताव से सहमत हो गए। वंदना के पास तो पासपोर्ट था लेकिन संजना का पासपोर्ट आनन फानन में बनवाया गया, और हम लोगो ने देवेंद्र जी को  बोल दिया कि इस बार हम दो लोग नहीं 4 लोग आएंगे। उन्होंने प्रसन्नता से सहमति दे दी। यलो फीवर आदि के टीके लगाने की औपचारिकता...

संस्मरण- कोटा के एक विद्यालय का

आज दिनांक 24 मार्च को झालावाड़ जाते समय कोटा में हमारे मित्र श्री महावीर विजय वर्गीय जी के 4 विद्यालय हैं उनमें से एक जूनियर विंग में जाना हुआ, वहां दो स्कूलों का वो स्टाफ एकत्र ...

गीत- वो बदले तो मजबूरी है.....

तन और मन है पास बहुत फिर, सोच-सोच में क्यों दूरी है? हम बदले तो कहा बेवफा, वे बदले तो मजबूरी है। गंगा के तट बैठ रेत के,बना-बना के महल गिराये। उसने हमको, हमने उसको जाने कितने सपन दिख...

गीत

बेबसी के तम घनेरे कब तलक हमको छलेंगे? ये अन्धेरे तब छटेंगे दीप बन जब हम जलेंगे। चाहता है हर कोई हमको फँसाना जाल में, कुछ न कुछ लगता है काला ज़िंदगी की दाल में, हर तरफ फन को उठाये न...

गीत-अपनाना हो तो अपनालो...

मेरे अंदर खोट बहुत है अपनाना हो तो अपनालो, दिल का मंदिर सूना सूना आ जाओ एक दीप जला लो। सच कहता हूँ जीवन भर मैं सुर लय ताल समझ ना पाया, जितना जैसा समझ सका हूँ वैसा ही इस कंठ से गाय...