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एक मुक्तक

रात  माना  है  ज़रूरी,  दोपहर  भी   है   ज़रूरी , छांह जिसमें प्यार की हो, एक  घर भी है ज़रूरी,  राह  मुश्किल  है बहुत ये, कट न पाएगी अकेले-  ज़िन्दगी के इस सफ़र में, हमसफ़र भी है ज़रूरी, -डॉ. विष्णु सक्सेना

संस्मरण- गुम हुआ ब्रीफकेस

जब जब चेन्नई एयरपोर्ट पर उतरता हूँ, तब तब एक पुरानी घटना मुझे रोमांचित कर कभी गलती न करने की प्रेरणा देती  रहती है। आज भी जब अजात शत्रु और शम्भू शिखर के साथ चेन्नई की धरती पर प...

संस्मरण- अरे, इसे सीधा तो करिये विष्णु भगवान****

****अरे, इसे सीधा तो करिये विष्णु भगवान**** ( एक मजेदार संस्मरण ) अभी चार दिन पहले की ही तो बात है। साहित्य गंधा के संपादक श्री सर्वेश अस्थाना ने बताया कि सम्मान समारोह के मुख्य अतिथ...

संस्मरण- हरी जैकेट

*******हरी जैकेट******** अभी कुछ दिन पहले की ही तो बात है। 20 नवंबर को उत्तरप्रदेश के गोंडा जिले में जाना हुआ। वहां के जिलाधिकारी कैप्टन श्री प्रभांशु जी के आमंत्रण पर एक कॉम्पेक्ट काव्...

संस्मरण - एक फ़ेन पुलिस अधिकारी

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इसे पूर्व जन्मों का प्रताप कहूँ या बड़ो का आशीर्वाद कुछ समझ मे नही आता है। एक पुलिस अधिकारी जो पिछले 20 वर्षो से मुझे दूर से कवि सम्मेलनों में सुनता रहा, मुझे चाहता रहा, मुझे फॉलो करता रहा, और मुझे देवता मानता रहा, लेकिन कभी बात नही हुई। जब से फेसबुक और यू ट्यूब आया तब से रात रात भर मुझे सुनने लगा और गत 2 वर्षों से फोन पर वार्तालाप तथा वाटस एप पर चेटिंग कर अपना आदर प्रस्तुत करता रहा। उसके लिए कल शनिवार दिनांक 10 जनवरी के दिन किसी त्योहार से कम नही था जब गोमती नगर के विपुल खंड में होने वाले कवि सम्मेलन में उसे मुझसे मिलने आना था। अपनी ड्यूटी आदि दायित्वों को सही से समायोजन करने के बाद जब रात के साढ़े ग्यारह आलमबाग से गोमती नगर आये तो मेरा काव्यपाठ समाप्त हो चुका था। लेकिन कवि सम्मेलन समाप्ति के बाद जब वह भीड़ को चीरते हुए मंच पर आए और मेरे पास आकर ज़ोर से सेल्यूट मारा और मेरे पैर छुए तो मुझे उन्हें पचानाने में बिल्कुल परेशानी नही हुई। मैंने फिर भी पूछने के अंदाज़ में कहा- नीरज द्विवेदी? तो वो बोले यस सर। उनका पहला वाक्य था - सर आप मेरे अभिताभ बच्चन हो, और आज अपने हीरो के सामने खड़े होकर मुझ...

अद्भुत तनजानिया ( संस्मरण ) भाग-4

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15 जनवरी 2018 आज हमारा विदाई का दिन था। कुछ सामान रात को ही पैक कर लिया था शेष सुबह उठकर जल्दी जल्दी समान जमाया। कल की ट्रिप से कोई संतुष्ट नहीं लग रहा था। न ही जितेंद्र, न ही शिवि और न ही स्वयं पाठक जी। आज सोमवार था, काम का दिन, आज बॉस आने वाले है इसलिए जितेंद्र ने कल ही हमसे विदा ले ली थी।  बहुत भावुक थे जब वो हमसे जुदा हुए । इन तीन दिनों में जितेंद्र ने हम लोगो का साथ एक पल को भी नहीं छोड़ा। खूब सहयोगी भूमिका में रहे, संस्था के लिए भी और हमारे लिए भी। आज साढे नो बजे हम लोग नाश्ता करके अपना सामान लेकर नीचे आगये। यूँ हमारी फ्लाइट शाम को 5 बजे थी लेकिन पाठक जी शायद कल की कमी पूरी करना चाहते थे। दोनों गाड़ियों में जैसे ही समान रखना शुरू किया तभी तरुण वशिष्ठ जी होटल में आगये। और घर चलने का आग्रह करने लगे। उन्होंने बताया उनका बेटा बीमार है और वो हम लोगों से मिलना चाहता है। मैं खुद को रोक नहीं सका ये सुनकर। प्रवीण और पाठक जी की सहमति ली और सभी लोग चल दिये उनके आवास पर। रास्ते मे हम टेम्पल स्ट्रीट से गुजरे। तंजानिया देश मे इस मार्ग पर मंदिर, मस्जिद, चर्च , गुरुद्वारा सभी है...