अमेरिका के संस्मरण----2011.....(जब हम उम्मीद से पहले पहुँच गये.....)

कनाडा -

टॉरेंटॉ----

न्यूयार्क का कार्यक्रम करने के बाद हमें न्यूयार्क शहर घूमने के लिये पर्याप्त रूप से दो दिन मिले थे, बुधवार को न्यू जर्सी मे सुरेन्द्र तिवारी के निवास पर डिनर में शामिल होकर, श्री केशरी नाथ त्रिपाठी के सानिध्य में कवि गोष्ठी करके गुरुवार की सुबह कनाडा के लिये रवाना होना था।

सुरेन्द्रनाथ तिवारी परमाणु संस्थान में बहुत बडे इंजीनियर हैं, उन्हें अपने काम पर जाना था तो हम लोगों को सुबह ही नेवार्क एअर पोर्ट पर छोड कर अपने वर्क पर चले गये।

हमारी उड़ान न.126 थी, जब हम सामान चेक इन कर रहे थे तो हमें कहा गया के उड़ान न.124 उससे पहले जा रही है, अगर आप चाहें तो मै आपको उसमें भेज सकता हूँ। हमने मना कर दिया, हमारा जो निर्धारित जहाज है हम उसी में जायेंगे।

सुरक्षा जाँच के बाद हम लोग निर्धारित गेट पर आ गये। मौसम बहुत खराब हो रहा था। दो घंटे बाद घोषणा हुयी कि 126 का कोई समय निश्चित नही है, जिन यात्रियों को टोरेंटो जाना है वो उड़ान न. 124 में अपना बोर्डिंग पास बदलवा के बैठ सकते हैं। हम लोग पहले ही बहुत लेट हो गये थे, सो बिना विचारे औपचारिकतायें पूरी कर के 124 में बैठ गये।

संकट अब शुरू हुआ। टोरेंटो के आयोजकों को ये पता कि हम 126 से आ रहे हैं जिसकी सूचना टोरेंतो मे ये दी जा रही है कि ये अनिश्चित कालीन लेट है। हम 124 में बैठ चुके हैं,जिसकी सूचना हम उन्हें इसलिये नही दे सकते कि जहाज में बैठते ही समिति द्वारा दिया गया मोबाइल डेड हो गया, कनाडा में भी ये काम इसलिये नहीं करेगा क्योंकि इसमें इंटरनेशनल रोमिंग नहीं है। मैं और प्रवीण चिंता में और सर्वेश निद्रा में मग्न थे। मौसम बहुत खराब था बार बार बेल्ट बाँधने के लिये बोला जा रहा था, भयंकर डबडबाता हुआ जहाज कई आशंकायें पैदा कर रहा था। जैसे-तैसे हम कनाडा के एक छोटे से आइलेंड पर उतरे। ये भी एक रोमांचक अनुभव था, जब हमारा जहाज लेंड कर रहा था तो ऐसा लग रहा था कि समुद्र मे उतर रहा है। जब वह छोटी सी हवाई पट्टी पर उतरा तो खिड़की से साफ दिखाई दे रहा था कि समन्दर की तेज़ लहरे रन-वे पर थपेड़े मार रहीं थीं।

दूसरा देश था इसलिये इम्मीग्रेशन की लाइन में भी लगना पड़ा। फिर बेगेज क्लेम से सामान लेकर फेरी की तरफ बढ़े। फेरी एक प्रकार का छोटा सा स्टीमर होता है जो यात्रियों को इस किनारे से उद किनारे ले जाता है।

हमारा जब तक नम्बर आया तब तक एक फेरी यात्रियों को लेकर जा चुकी थी। 30 मिनिट के बाद जब दुबारा आयी तो हम सब उसमें बैठे। हमारा पहुँचने का जो समय था उससे एक घंटा अधिक हो गया था, अब समस्या ये थी कि हमारा तो यहा फोन भी काम नहीं कर रहा, टोरेंटो वालों को कैसे बतायें कि हम आ चुके हैं, जब कि वो लोग हमारा इंतज़ार करके जाने की तैयारी में थे, तभी दिमाग में आया कि प्रवीन के पास जो फोन है उसे देखें, देखा तो उसमें सिगनल आ रहे थे, उससे जैसे ही हमने ग्यानेश पालीवाल को फोन मिलाया तो वो एक दम चौंक कर बोले कि आप अभी न्यूयार्क से चले या नहीं, हमने कहा- हम टोरेंटो आ गये हैं। ये सुन कर उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा।

बेसब्री से इंतज़ार कर रहे श्रीमती एवम श्री श्याम त्रिपाठी, ज्ञानेश एवम अंशु पालीवाल ने हमारा फूलों से स्वागत किया। गाडियों में सामान लदवा कर रास्ते में जब उन्हें पूरा हाल सुनाया तो उन्होंने राहत की सांस ली और भगवान का लाख-लाख शुक्रिया अदा किया।

Comments

Popular posts from this blog

रेत पर नाम लिखने से क्या फायदा.......

एक दीवाली यहाँ भी मना लीजिये........

गीत- वो बदले तो मजबूरी है.....