अमेरिका के संस्मरण--2011..... (पश्चिम में पुरवाई .....)


कितना सुखद आश्चर्य होता है जब कही कुछ अप्रत्याशित रूप से बहुत दूर अपना सा कुछ मिल जाए |मन करता है इसको अपनी आँखों में भर लू दिल कहता है इसे अपने भीतर समेत लूं और भावनाएं मचल उठती है इनको महसूस करने के लिए |

आप यकीन मानिये हमने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि बीस हज़ार मील दूर हमारी मिटटी इस तरह महकती मिलेगी कि हम उसकी महक को जिंदा नाचते गाते देख ही नहीं सकेंगे बल्कि उसके गवाह भी बन जायेंगे |अमेरिका जिसके बारे में कहा जाता है कि ये देश ऐसा है कि दुनिया भर को अपनी ओर खींचता है और फिर अपने में ही समेत कर उसका अस्तित्व भी ख़त्म कर देता है

लोग़ अमेरिका को ड्रग की तरह समझते हैं जिसकी चपेट में आकर आदमी अपनी पहचान तक खो देता है....

लेकिन हम एक बात अब पूरे दावे के साथ कह सकते हैं कि हिन्दुस्तान का युवा अब समझ गया है कि हमे अपनी विशिष्ट्पहचान बनाए रखने के लिए अपनी मूल पहचान को ज़िंदा रखना पड़ेगा | और यह तभी संभव है जब युवा वर्ग अपनी संस्कृति, अपनी परम्पराएं तथा अपने रीति रिवाज़ बचाए रखने के लिए मुस्तैदी दिखाए|

अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति के निमंत्रण पर जब हम (डॉ विष्णु सक्सेना, सर्वेश अस्थाना, डॉ प्रवीण शुक्ल) अमेरिका आये तो हम दोनों उसी गफलत में थे कि युवा वर्ग शामिल नहीं होगा क्योकि हम दोनों के पिछले तीन अनुभव इस बात के साक्षी है कि हिंदी कवि सम्मेलनों में हिंदी भाषियों कि नयी पीढ़ी कभी नहीं आती है सिर्फ अधेड़ और बुजुर्गो के दम पर ही यहाँ हिंदी अपनी साँसे ले रही है प्रवीण की पहली यात्रा होने के कारण उनका इस विषय में कोई ख़ास मत नहीं बन सकता था|


यूनीवर्सिटी आफ नार्थ कोरोलिना की यात्रा ने हमारा ये भ्रम तोड़ दिया और हमें अमेरिका में रह रहे नव वय के भारतीयों पर गर्व करने को विवश कर दिया.| साथ ही ये भी महसूस किया कि हिंदी कि लोकप्रियता व ज़रुरत भी विश्व में बढ़ रही है| हमारे पैरों के नीचे से ख़ुशी से ज़मीन सी खिसकती महसूस हुयी जब इस यूनिवर्सिटी के हिंदी उर्दू विभाग में विशुद्ध सफ़ेद अमेरिकन प्रवक्ता श्री जान काल्ड वेल फर्राटेदार हिंदी उर्दू बोलते हुए मिले | ये हमने ज़िन्दगी में पहली बार देखा था| इस विभाग में प्रोफ़ेसर के पद पर उत्तर प्रदेश के अफरोज ताज साहब है जिनके माध्यम से जान साहब मिले| जान साहब हमे भारतीय संस्कृति के अँगरेज़ झंडाबरदार नज़र आये| शानदार उच्चारण भारत का गहरा ज्ञान ये सिद्ध कर रहा था कि अब वो दिन दूर नहीं जब पूरी दुनिया में लाखों जान कालवेल हिंदी का परचम उठाये हुए हमें गौरव और गर्व दोनों दोनों महसूस करा रहे होंगे|

हम यूनिवर्सिटी का भ्रमण कर रहेथे हिंदी की क्लास में भी गए जहा हिंदी को समझाने के लिए अंग्रेजी का इस्तेमाल हो रहा था, अफरोज साहब ने बताया कि इस क्लास में चूंकि अमरीकन विद्यार्थी भी है इसलिए उनके दिल दिमाग में हिंदी को बिठाने के लिए हम जान बूझ कर उनकी भाषा का प्रययोग कर रहे है जिस से हिंदी उनके भीतर तक स्थापित हो सके. क्योंकि आदमी हमेशा अपनी मात्र भाषा में ही सोचता है हम दोनों की आँखे गीली हो उठीं अपनी मात्र भाषा के प्रचार के प्रति समर्पण भाव देख कर| अमरीकन बच्चे अपनी रूचि को उत्सुकता की सीढियों पर चढ़ कर हिंदी के साथ मिला देना चाहते थे. प्रवीण को भी बहुत हर्ष हुआ.

अफरोज साहब ने बताया कि आज आपको हम वो भावनात्मक द्रश्य दिखाना चाहते है जिसकी आपने कल्पना भी नहीं कि होगी । यहाँ पर रह रही हमारी नयी पीढ़ी अपनी परम्पराओं के प्रति कितनी जागरूक है और उनके प्रसार के लिए कितने प्रयास कर रही है|



अफरोज जी और जान साहब हमें विश्वविद्यालय के उस हिस्से में ले गए जहा वो आयोजन था जिसके बारे में सुन कर ही हमारी उत्सुकता सातवें आसमान पर चढ़ गयी थी. उस खुली जगह पर सैकड़ो हिन्दुस्तानी और अमरीकन तथा नीग्रो स्टुडेंट एकत्र थे. अवसर था हिन्दुस्तानी छात्र छात्राओं द्वारा भारतीय मुस्लिम विवाह का नाट्य प्रस्तुतीकरण यानि रोल माडल प्रजेंटेशन | यह सब यूनिवर्सिटी के अन्य बच्चों को भारतीय परम्पराओं से परिचित कराने के लिए किया गया था|

मुस्लिम विवाह का जो उत्कृष्ट प्रदर्शन विद्यार्थियों ने किया वो काबिले तारीफ़ था| बाकायदे लड़की वाले और लड़के वाले दोनों पक्ष बनाये गए| कुछ लड़की वाले तो कुछ लड़के वाले, मौलवी भी थे तो गवाह भी थे तो वकील भी मुक़र्रर किये गए थे| एक लड़की अंग्रेजी में एक एक स्टेप बताती चल रही थी अर्थात वो सूत्रधार का काम कर रही थी, हर कदम पर दर्शक तालियाँ बजा कर भारतीय रीति रिवाजों का स्वागत कर रहे थे. मुझे तो खुद पर तरस आया क्योंकि जितना वो विद्यार्थी जानते थे उतना तो हम भी नहीं जानते थे| हज़ारों दर्शकों ने इस डिमास्ट्रेशन का अवलोकन कर उसके बारे में जानकारी पायी | अन्य लोगो में अपनी परम्पराओं और रीति रिवाजों को पहचान इलाने के लिए जो तरीका हमारे नव वय के लोगो ने अमेरिका अपनाया शायद वही सबसे सही तरीका है| शादी की रस्म के बाद दावत भी हुयी जिसमे भारतीय भोजन का पूरा इन्तेजाम था| नाच गाना भी था जिसमे शादी से सम्बंधित गाने ही गाये गए और इन गानों पर बाराती और जनाती विद्यार्थी खूब खुल कर नाचे|

डॉ विष्णु सक्सेना जी ने मेरे और प्रवीण के कंधो पर हाथ रखे और खुशी में डूबी भर्राई आवाज़ में कहा- कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी...

इसी के साथ हम तीनों कवि नकली दूल्हा दुल्हन को बधाई देने उनकी ओर बढ़ गए ....अफरोज साहब नगाड़ा बजाने लगे ..जान साहब तस्वीरें खींचने लगे ..लड़के लडकियाँ नाचने लगे क्योकि गाना ही ऐसा बज रहा था ....ये देश है वीर जवानो का अलबेलो का मस्तानो का ...हम तीनो खुशी से झूमने लगे

-सर्वेश अस्थाना

डा. विष्णु सक्सैना, नोर्थ केरेलाइना यूनिवर्सिटी से....

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