हमने बिल्कुल देर नहीं की....(अमेरिका संस्मरण)


हमारी इस पूरी श्रंखला का सबसे शानदार कार्यक्रम शहनाई बेंक्वट हाल में हुआ । बेहतर लोग, उत्तम व्यवस्थायें, शानदार वातावरण, और अनुकूल मौसम,,,।

श्री सुभाष पांडे उ.प्र. एसोसिएशन के अध्यक्ष, एअर पोर्ट से सीधे अपने घर पर खाना खिलाकर एक अच्छे होटल में छोड़ गये। जाते समय कहा कि आप लोग ठीक 4-45 पर तैयार हो जाइये मैं आपको शाम के कार्यक्रम के लिये लेने आउंगा। उनके इस वक्तव्य पर गुस्सा तो बहुत आरहा था, क्यों कि शुक्रवार,शनिवार, रविवार,इन तीन दिनों में इतना हेट्रिक हो जाता है कि आराम करने के लिये वक्त ही नही मिलता है। अभी तीन बजे हैं और 4.45 पर तैयार रहना है, इतनी देर में आराम भी करना, नहाना, कपड़ों पर प्रेस भी करना....ओह...

सुभाष जी ने हमें 4.40 पर फोन किया कि मैं रास्ते में हूँ, जब कि वो अभी घर से निकले ही नही थे, हम लोग देर न करें और थोडा मार्जिन रखकर तैय्यार रहें इसलिये थोड़ा सा झूठ बोला । हम थीक 4.44 पर लाबी में आगये। सुभाष जी को आने में 4 मिनिट की देरी हो गयी। वो जैसे ही लाबी में आये, हमें पहले से ही वहा बैठा देखकर चौंक गये। फिर अपनी घड़ी की तरफ देखा, थोडा सा शर्मिंदा हुये, बोले- मैं तो जीवन में पहली बार देख रहा हूँ कि कवि/ आर्टिस्ट इतने समय के पाबन्द होते हैं। अभी तक 16 आयोजन करा चुका हूँ, ये पहली घटना है कि आपने हमें बिलकुल इंतज़ार नहीं कराया

ये हमारा पहला इम्प्रेशन था।

फिर कार्यक्रम में जो हम तीनों ने अपना-अपना जलवा बिखेरा तो हमारी प्रतिष्ठा मे चार चाँद लग गये। कार्यक्रम अध्यक्ष् श्री घनश्याम पांडे ने तो अपने आभार वक्तव्य में ये तक कह दिया कि आज हम जितना हँसे हैं उससे अधिक विष्णु सक्सैना जी की कविताओं ने हमें रुलाया भी है। ये हमारे शिकागो मे होने वाले सबसे अच्छे तीन कार्यक्रमों में से एक है।

अगले दिन सुभाष जी ने अपने काम से छुट्टी लेकर हमें डाउन टाउन, मिशीगन लेक, मन्दिर, विवेकानन्द जी ने जहा पहला भाषण दिया वो जगह बड़े ही स्नेह के साथ दिखाई, जिन्हें देख कर हम अभिभूत होते रहे...।

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