अमेरिका के संस्मरण---2011.....(जब नये गीत ने भावुक किया.....)

अमेरिका के संस्मरण-

डलास-टेक्सास

इस बार की अमेरिका यात्रा कई मायनो मे अनूठी रही। क्यों कि इस बार की टीम मेरे नेतृत्व मे गई थी इसलिये मैं भी चाहता था कि ये यात्रा अविस्मरणीय बने इस लिये भारत से जाने के बाद पहला पडाव ड्लास मे नन्द लाल सिंह जी के घर पर हुआ। श्री सिंह लगभग 30 वर्षों से अमेरिका मे रह रहे है, बहुत कुशल सोफ्ट्वेयर इंजीनियर हैं। हिन्दी का झण्डा बुलन्द करने वालों में उनका नाम बडे सम्मान से लिया जाता है।

पहले दिन आराम करने के बाद मैंने अपने दोनों साथियों (सर्वेश अस्थाना,प्रवीन शुक्ल) से कहा कि इस बार के कवि सम्मेलन मे कुछ हट कर किया जाये, क्यों न हम कोई गीत एसा लिखें जो अमेरिका में रह रहे भारतीयों के जन मानस पर सकारात्मक प्रभाव डाले। दोनों लोग बहुत ही रचनात्मक थे इसलिये तुरंत राजी हो गये और एक गीत लिखने का मन बनाया। सबसे पहले मेरे द्वारा गीत की ऐसी धुन बनाई गयी जो लयबद्ध तलियों के साथ गायी जा सके। फिर उस धुन पर शब्दों का ताना-बाना पिरोया गया। गीत के कई मुखडे मैदान में आये लेकिन अंतत: मेरे द्वारा रचित एक मुखडा ही सर्व सम्मति से विजेता घोषित किया गया।

मेरे ये दोनों साथी हास्यव्यंग्य के कवि ज़रूर थे लेकिन गीत लिखने की कला में भी पूरे पारंगत थे। इसलिये हम तीनों ने ये गीत पूरी ईमानदारी के साथ मिलजुल कर लिखा। पूरे गीत में प्रवासी भारतीयों के मान सम्मान बढाने से लेकर हिन्दी की उन्नति और मानवीय संवेदनाओं का पूरा समावेश किया गया । अब सवाल था कि इसकी प्रस्तुति कैसे और किस समय हो? इस मामले में हमारे दोनों साथियों ने अपनी-अपनी राय दी, मेरा अनुभव दस वर्ष पहले का बहुत सुखद रहा था, उस समय इसी प्रकार का एक गीत मैंने और अशोक जी ने बनाया था और कार्यक्रम के अंत में हम दोनों मिलकर गाया करते थे।तो इस बार भी तय यही हुआ कि अंत में ही इस गीत को पढ़ा जाये। सस्वर पाठ की ज़िम्मेदारी मेरे ऊपर डाली गयी।

पहली अप्रेल को डलास मे इस गीत का पहला प्रयोग किया गया। मैंने मुख्य रूप से इसे प्रस्तुत किया दोनों साथी सहयोगी के रूप में मेरे आजू-बाजू खड़े होकर कोरस देने लगे। जैसे-जैसे गीत आगे बढ़ता गया लोगों की भावनायें इस गीत से जुड़ने लगीं। पाँच अंतरों के इस गीत में तीसरे अंतरे में तो लोगों की आँखें नम हो आयीं। अंतिम अंतरे में तो पूरे हाल में श्रोताओं ने अपने स्थान से खड़े होकर लय बद्ध तालियों से इस गीत का और हम तीनों का भरपूर स्वागत किया। कार्यक्रम समाप्ति पर लोग बहुत भावुक दिखे। सभी ने भरे गले से हमें अपना अशीर्वाद दिया।

पहले दिन की सफलता ने हमारा आत्म विश्वास दुगना कर दिया था। चार प्रोग्रामों के बाद तो इस गीत की महक पूरे अमेरिका और कनाडा में फैल गयी। सभी जगह जिस गीत को हृदय से सराहा गया वो गीत कुछ इस तरह था .............।

प्यारा हिंदुस्तान, हमारा प्यारा हिंदुस्तान,
उन सबको है नमन, बढाते जो भारत की शान |

भारत की खुशबू को पूरी दुनिया में फैलाया,
आप जहाँ भी गए, वहाँ पर अपना देश बनाया,
अपनी भाषा अपनी संस्कृति ने आकाश छुआ है,
विश्व पटल पर इसीलिए भारत का नाम हुआ है,
गूंज रहा हैं अखिल विश्व मैं जन-गण-मन का गान
प्यारा हिंदुस्तान हमारा प्यारा हिंदुस्तान |

हैं भारत से दूर, तिरंगा फिर भी दिल में रहता,
इसीलिये तो आज तिरंगा आप सभी से कहता,
कभी न झुकने पाए मस्तक तना रहे यह सीना,
अमरीका के स्वर्ण मुकुट में बनकर रहो नगीना,
सात समंदर पार बढ़ाना गंगा का सम्मान।
प्यारा हिंदुस्तान, हमारा प्यारा हिंदुस्तान |

जाने कितने अब भी गुमसुम, है धागे राखी के,
होली के भी रंग तुम्हारे बिना लग रहे फीके,
दीपक सारे यहाँ, वहाँ पर कैसे मने दीवाली,
बिना कन्हैया लगे यशोदा को घर आँगन खाली,
पनघट सुनने को व्याकुल है फिर वंशी की तान।
प्यारा हिंदुस्तान हमारा प्यारा हिंदुस्तान |

Comments

//पनघट सुनने को व्याकुल है फिर वंशी की तान।
प्यारा हिंदुस्तान हमारा प्यारा हिंदुस्तान |//

बहुत ही प्यारा गीत ..............आप तीनों को बधाई .......
Dr. Ram Akela said…
Aap teeno ki pratibha par koi shak nahi kar sakta. aap logo ne sahi mayne me amerika ko sachhe kavi sammelano ka sansar soupa he. aane vali pidhiya kavitao our kaviyo se pyar karegi to usme aap ka yagdan our lekhan hamesha yaad kiya jayega...!

Dr. Ram 'Akela'
Pipar City - Jodhpur
Rajasthan.
'जदु' said…
आप के तो अंदाज़ ही निराले हैं, काश हम आपका ये विडियो भी देख पाते|
जाने कितने अब भी गुमसुम, है धागे राखी के,
होली के भी रंग तुम्हारे बिना लग रहे फीके,
दीपक सारे यहाँ, वहाँ पर कैसे मने दीवाली,
बिना कन्हैया लगे यशोदा को घर आँगन खाली,
पनघट सुनने को व्याकुल है फिर वंशी की तान।
प्यारा हिंदुस्तान हमारा प्यारा हिंदुस्तान |

bahut umda waqai ankhen nam ho gain

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