मुक्तक

आबे ज़म ज़म है उधर और इधर गंगा जल,
एक तरफ़ गीत की खुशबु एक तरफ़ महके ग़ज़ल,
बड़ी मुश्किल में फंसा हूँ किसे देखूं पहले
एक तरफ़ प्यार मेरा एक तरफ़ ताजमहल।

मेरे महबूब ठहर जा तुझे कल देखूंगा,
तुझे पाने की राह और सरल देखूंगा,
कहीं छुप जाए न पूनम का चाँद बादल में
इसलिए पहले आज ताजमहल देखूंगा.
[ शेष संकलन में----]

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......जहाँ तरलता थी

मैं डूबता चला गया...

जहाँ सरलता थी

मैं झुकता चला गया....

संवेदनाओ ने मुझे

जहाँ जहाँ से छुआ

मैं वहाँ वहाँ से

पिघलता चला गया.... .........Rahi

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