दीपावली गीत

बेबसी के तम घनेरे कब तलक हमको छलेंगे?
ये अन्धेरे तब छटेंगे दीप बन जब हम जलेंगे।

चाहता है हर कोई हमको फँसाना जाल में,
कुछ न कुछ लगता है काला ज़िंदगी की दाल में,
हर तरफ फन को उठाये नाग भी फुफकारते,
भूलकर अपना पराया दंश केवल मारते,
मोम हैं हम, किंतु इन साँचों में आख़िर क्यों ढलेंगे?.......

आज हमको ही डराती हैं निजी परछाइयाँ,
चैन से रहने हमें देती कहाँ तन्हाईयाँ,
खत्म होता जा रहा,हर आँख से पानी यहाँ,
अब यहाँ तक आगये हैं और जाएंगे कहाँ,
सामने मंज़िल नहीं तो और अब कैसे चलेंगे?......

मत समझिए लघु किसी को इस वृहद संसार में,
एक दीपक ही बहुत है इस घने अंधियार में,
हर कोई जकड़ा हुआ है नफरतों के तार से,
क्यों नहीं बन्धन सभी सब काटते है प्यार से,
यत्न सच्चे हों अगर, मिलकर सभी फूले फलेंगे।.....
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