मुक्तक/परिंदा

प्यार का ज़ख़्मी परिंदा है उड़ न पायेगा,
चिराग  तेज़  आंधियों  से लड़ न पायेगा,
मैं कैसे तुझपे एक बार फिर यकीं कर लूँ-
जो टूट कर बिखर गया वो जुड़ न पायेगा,

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