जगत में सेवा...

जगत में सेवा ही है सार 

सेवा के मग का  है जग में बहुत बड़ा विस्तार 
नर से लेकर नारायण तक हैं इसके आधार। जगत....

सेवा करना सरल नहीं है दुष्कर है व्यापार 
इसका पालन महा कठिन है कहते शास्त्र पुकार। जगत....

नारायण मय सृष्टि समझकर ले जा परली पार 
तब भवसागर से सेवक का हो क्षण में उद्धार। जगत....

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